[ गुणाकर मुले १३ अक्टूबर को गुजर गये । बचपन से हम सब ने जिन्हें हिन्दी के प्रमुख विज्ञान लेख के तौर पर पढ़ा है उनकी मृत्यु की खबर सूचना क्रान्ति के तहत शायद इतनी बड़ी खबर नहीं बनती कि उनके सभी प्रशंसक जान पायें । एक तकनीकी संस्थान में हिन्दी अधिकारी जिन्होंने गुणाकर जी को अपने संस्थान में व्याख्यान हेतु आमन्त्रित किया था – प्रियंकर पालीवाल को इस बात का सदमा पहुंचा कि उन्हें यह खबर जानने में विलम्ब हुआ । सैटेलाईट खबरिया चैनेलों के लिए यह खबर नहीं बनती होगी। हिन्दी चिट्ठों में विज्ञान लेखन के सुव्यवस्थित समूह है । हमें आशा करते हैं कि इस महत्वपूर्ण हिन्दी सेवी पर शीघ्र ही हमें विस्तृत आलेख पढ़ने को मिलेगा । यहाँ मैं एजेन्सी द्वारा जारी संक्षिप्त खबर को दे रहा हूँ । ]
नई दिल्ली। हिन्दी और अंग्रेजी में विज्ञान लेखन को लोकप्रिय बनाने वाले गुणाकर मुले का शुक्रवार को निधन हो गया। वह 74 वर्ष के थे। पारिवारिक सूत्रों के अनुसार मुले पिछले डेढ-दो वर्षो से बीमार थे। उन्हें मांसपेशियों की एक दुर्लभ जेनेटिक बीमारी हो गई थी जिससे उनका चलना-फिरना बंद हो गया था। उन्होंने दोपहर 1.30 बजे अंतिम सासें ली।
महाराष्ट्र के अमरावती जिले के सिंधू बुर्जूग गांव में जन्मे गुणाकर मुले मराठी भाषी थे, पर उन्होंने पचास साल से अधिक समय तक हिन्दी में विज्ञान लेखन किया। उनकी करीब 35 पुस्तकें छपीं। उनके परिवार में पत्नी, दो बेटियां एवं एक बेटा है।
मुले ने हिन्दी में करीब तीन हजार लेख लिखे, जबकि अंग्रेजी में उन्होंने 250 सौ से अधिक लेख लिखे।
उन्हें हिन्दी अकादमी का साहित्यकार सम्मान, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान का आत्माराम पुरस्कार, बिहार का कर्पूरी ठाकुर स्मृति सम्मान मिल चुका है।
गुणाकर जी मुले मुझ जैसे हिंदी भाषियों के लिए विज्ञान के क्षेत्र में पुल का साक्षात रूप थे. मुझे याद ही नहीं कि कितनी ही बार मैंने मुले जी के लेखों के ही माध्यम से विज्ञान विषयों की जानकारी पाई होगी. गुणाकर मुले जी को विनम्र नमन. प्रभु दिवंगत आत्मा को अपार शांति प्रदान करे.
भाषा विज्ञानं के क्षेत्र में भी स्वर्गीय मुले जी का अभूतपूर्व योगदान रहा है. हमें उन्होंने विभिन्न लिपियों से परिचय कराया अपनी पुस्तक “अक्षर कथा” के माध्यम से.
बचपन में उनकी किताबों के लिए लाईब्रेरी में होने वाली तू-तू मैं-मैं याद करा गई आपके द्वारा दी गई यह दुखद जानकारी।
दिवंगत को विनम्र श्रद्धाँजलि
बी एस पाबला
श्रृद्धांजलि!!
Unki atma ko shanti mile….
गुणाकर मुले ने गणित की पहेलियों की पुस्तक लिखी है। यह मेरी प्रिय पुस्तक हुआ करती थी। इस पुस्तक और इससे एक पहेली का जिक्र, मैंने अपनी इस चिट्ठी में भी किया है।
गुणाकर मुळे निर्विवाद रूप से हिंदी के सबसे बड़े विज्ञान लेखक थे . और बिना कोई नौकरी किये सिर्फ़ लेखन के सहारे जीवनयापन करने वाले साहसी लेखक भी . अपने इतने विपुल लेखन के लिये उनके मन में कोई मुगालता नहीं, बल्कि हमेशा एक सजग उत्तरदायित्व का भाव ही मैंने देखा. उनका लेखन उन विज्ञान-संचारकों के लिये भी एक सबक है जो अपनी जिम्मेदारी से बचते हुए हर जगह शब्दों और शब्दावलियों का रोना रोते दिख जाते हैं .
इलाहाबाद विश्वविद्यालय से गणित में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त करने वाले मराठीभाषी मुळे जी को व्यक्तिगत रूप से जानने-पहचानने का मौका मिला है और उनके व्याख्यान सुनने और आयोजित करने का भी . हिंदी विज्ञान लेखन के इस शीर्ष-स्थानीय व्यक्तित्व को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि .
मेरी विनम्र श्रद्धांजलि .
ओह बहुत दुखद -मुले जी नहीं रहे ! हिन्दी में विज्ञानं लोकप्रियकरण का एक स्तम्भ ढह गया ! हद है तमाम संचार माध्यमों के बावजूद यह खबर ब्लागजगत से ही मिल पायी है ! मुले का जीवट का व्यक्तित्व किसी के लिए भी अनुकरणीय हो सकता है -वे सही अर्थों में विज्ञानं को आम आदमी तक ले जाने को पूर्णरूपेंन समर्पित रहे और बिना नौकरी और सरकारी टुकडों पर पले पूर्ण कालिक विज्ञान लेखन की अलख जगाते रहे ! मेरा श्रद्धासुमन !
बचपन से हम भी पढ़-पढ़कर आह्लादित होते रहे थे, यह सोच-सोचकर और कि लिखवैया अहिंदीभाषी, महाराष्ट्र का है..
जानकर तक़लीफ़ हो रही है. इस दुख में हमारा भी सहभाग.
मुळे साहब के जाने की सूचना आपसे ही पाई। आज तक जो भी विज्ञान पढ़ा, हिन्दी माध्यम से पढ़ा। उसमें भी समझ में आनेवाली जो बातें हैं, वे गुणाकर मुळे साहब के लेखन से जानी।
उनका काम न भुलाया जा सकने वाला है। अगर हमें वेताल कथाएं याद है, पंचतंत्र याद हैं, तेनालीराम याद हैं, अगाथा क्रिस्टी याद हैं तो यह भी याद रखना चाहिए कि इन्हीं यादगारों में एक गुणाकर जी का नाम भी था और वे अब तक हमारे बीच थे…
गुणाकर मुले का जाना मेरे लिए अजीब बात है . एक बच्चे के रूप में मैंने उनकी किताबें पढी थीं .अभी तक लगता था कि कि वे मेरी ही उम्र के होंगें . आज धक् से लगा कि जिस आदमी की किताब बचपन में पढी थी , वह पिताजी की उम्र के तो रहे ही होंगें. बहर हाल उनके मेरे जैसे बहुत सारे एकलव्य होंगें और इस विज्ञान लेखन के द्रोणाचार्य को प्रणाम कर रहे होंगें.
यह दु:खद समाचार आपकी इस पोस्ट के जरिए ही जान पाया। यह सही अर्थों में अपूरणीय क्षति है। हिन्दी के इस महान विज्ञान लेखक को हमारी विनम्र श्रद्धांजलि।
ओह! इतनी देर से यह दुखद सूचना मिल पाई. अपने देश से दूर रहने का यह दंड तो है ही.
उनकी स्मृति को सादर नमन !
पिंगबैक: इस चिट्ठे की टोप पोस्ट्स ( गत चार वर्षों में ) « शैशव
My tearful tribute to greate writer who struggled for the science popularisation in order to uplift our society & country. We must make a plan to keep his movment & memory alive .gov.should start a prize on his name hand