Technorati tags: अंग्रेजी का आधिपत्य, angreji ka adhipatya
[लेख का प्रथमार्ध यहाँ है । ]
वैश्वीकरण के इस दौर में अंग्रेजी और हिन्दी का संकरन करके ‘हिन्दलिश’ या हिन्गलिश को प्रचलित करने की कोशिश की जा रही है । हमारे हिन्दी चैनलों , पत्रिकाओं और अखबारों में इसकी झांकी देखी जा सकती है । विज्ञापनों में खास तौर पर यह देखने को मिल रही है। हिन्दी में अचानक अंग्रेजी शब्दों की भरमार हो गयी है । इसे व्यावहारिकता , लोकप्रियता और आधुनिकता के नाम पर चलाया जा रहा है ।लेकिन इससे भाषा ज्यादा बोझिल , बनावटी और अजनबी हो रही है ।सवाल भाषा की शुद्धता का नहीं है । किसी भी जीवन्त भाषा में नए शब्द आते रहते हैं और आदान-प्रदान होता रहता है ।हिन्दी में भी कई अंग्रेजी शब्द प्रचलित हो गए हैं और भाषा का हिस्सा बन चुके हैं जैसे स्कूल , कॉलेज , मास्टर , नम्बर , टाइम ,फिल्म ,टीवी , फोन , मोटर , बस , कार, इंजन , डॉक्टर ,कलेक्टर आदि । यह प्रक्रिया पिछले दो सौ साल से चली है और ऐसे अनेक शब्द तो देहाती बोलियों का भी हिस्सा बन चुके हैं । लेकिन इधर कुछ सालों में अचानक जिस तेजी से अंग्रेजी शब्दों को हिन्दी भाषा में डाला जा रहा है , उससे हिन्दी दुरूह और बोझिल हो रही है और हिन्दी की अपनी पहचान खतम होने का खतरा पैदा होता जा रहा है । इसमें सवाल भौगोलिक स्थिति का भी है ।महानगरों में अंग्रेजी के जो शब्द स्वाभाविक एवं प्रचलित होते हैं ,उन्हें समझने में छोटे नगरों , कस्बों और देहातों के अंग्रेजी न जानने वाले पाठकों को रुकावट एवं दिक्कत आती है ।जिन चीजों के लिए हिन्दी में अच्छे , सरल व सुगम शब्द हैं , वहाँ अंग्रेजी शब्दों को बीच में घुसाने की आखिर क्या मजबूरी है ? कुछ उदाहरण हैं : –
हिन्दी अंग्रेजी
छात्र , विद्यार्थी स्टुडेन्ट
पाठ्यपुस्तक टेक्स्टबुक
खेलकूद गेम्स , स्पोर्ट्स
खिलाड़ी प्लेयर ,स्पोर्ट्समेन
कचहरी ,अदालत कोर्ट
प्रशासन एडमिनिस्ट्रेशन
सरकार गवर्नमेन्ट
संगीत म्युज़िक
गीत सॉंग
संस्कृति कल्चर
लड़के बॉय्ज़
लड़कियाँ गर्ल्स
शहर , नगर सिटी
कस्बा टाउन
अखबार न्यूज़ पेपर
हिन्दी और अंग्रेजी का यह आदान-प्रदान दोतरफ़ा , बराबरी का और स्वस्थ नहीं है । कई बार इसमें हिन्दी वालों की हीनभावना दिखायी देती है । जैसे अपनी माँ , बहन , पत्नी या अपने पिता के बारे में बताते हुए प्राय: हिन्दीभाषी उन्हें माँ , बहन ,पत्नी या पिता कहने में शर्म आती और तब वह उनका परिचय मदर , सिस्टर , वाइफ़ ,या फ़ादर के रूप में देता है । उसे संडास ,पखाना या टट्टीघर कहने में झिझक होती है ,’लैट्रिन’ या ‘टॉयलेट’ के रूप में वही चीज सभ्य बन जाती है । मौत के लिये हिन्दी में दर्जनों शब्द सम्मानजनक शब्द हैं जैसे निधन , देहान्त , स्वर्गवास , परलोकवासी होना, शांत होना , गुजर जाना आदि । लेकिन शिक्षित हिन्दीभाषी बताएगा कि ‘डेथ’ हो गयी है । हिन्दीभाषियों की इस हीनभावना के कारण वे अपने घनिष्ट और नजदीकी संबोधन में भी अंग्रेजी की नकल करते जा रहे हैं ।माँ अब ‘मम्मी’ हो गयी है पिता ‘पापा’ या ‘डैड’ हो गये हैं, ताऊ , काका , चाचा , मामा , फूफा , मौसा सब ‘अंकल’ बन रहे हैं और बूआ, चाची , मौसी , मामी , मौसी आदि ‘आंटी’ बनती जा रही हैं । ये प्रवृत्तियाँ मामूली नहीं हैं ।वे हमारी पहचान को खोने ,स्वाभिमान खतम होने और हीनभावना की चरम स्थिति का द्योतक हैं ।
हिन्दी का परिवार काफ़ी बड़ा है । देश के दस प्रान्तों की मुख्यभाषा हिन्दी है । हिन्दी और इससे जुड़ी बोलियों को बोलने वालों की संख्या ३० करोड़ से कम नहीं होगी । हिन्दी के समाचार पत्रों की प्रसार संख्या भी करोड़ों में पहुँच गयी है और उन्होंने अब संख्या में अंग्रेजी अखबारों को पीछे छोड़ दिया है । पिछले काफी समय से विश्व हिन्दी सम्मेलन आयोजित किए जा रहे है । लेकिन हिन्दी की हालत अच्छी नहीं है और इसका दर्जा दोयम होता जा रहा है । महारानी के पद पर अभी भी अंग्रेजी आसीन है , हिन्दी उसकी दासी है । महारानी का दबदबा बढ़ता जा रहा है । ऐसी हालत में हिन्दी का भविष्य अच्छा नहीं है । हिन्दी का भला चाहने वालों को पहले अंग्रेजी को उसके सिंहासन से हटाना पड़ेगा । रानी व दासी वाला रिश्ता ही खतम करना पड़ेगा । इस संघर्ष में भारत की अन्य भाषाओं के लोगों से सहयोग लेना पड़ेगा तथा उनसे बहनापा बढ़ाना पड़ेगा । क्षेत्रीय बोलियों और आदिवासी भाषाओं को भी मान्यता व इज्जत देना होगा ।यह संघर्ष गुलामी की विरासत और वैश्वीकरण के बहुआयामी हमले के खिलाफ़ बड़े संघर्ष का हिस्सा होगा । यह संघर्ष आसान नहीं होगा , क्योंकि अंग्रेजी के वर्चस्व में इस देश के सत्ताधारी वर्ग का निहित स्वार्थ है । उनके विशेषाधिकारों को सुरक्षित रखने और आम जनता की राह में दीवार खड़ी करने का काम अंग्रेजी करती है । इसलिए इस संघर्ष को एक सशक्त जन आंदोलन का रूप देना होगा। इस संघर्ष में कई लोगों को अपना जीवन लगा देना , खपा देना होगा । यह एक और आजादी की लड़ाई होगी । स्वराज का संघर्ष होगा। यह आज की बड़ी चुनौती है ।
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[ लेखक , आदिवासी अंचलमें काम करने वाला एक पूर्णकालिक कार्यकर्ता तथा समाजवादी जनपरिषद का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष है । ] पता : सुनील ,ग्राम/पोस्ट – केसला , जिला-होशंगाबाद,(म.प्र.) ४६११११ फोन – ०९४२५०४०४५२
अंग्रेजी या किसी भी अन्य भाषा से शब्द लेकर हिन्दी को पुष्ट करने में कोई नुक्सान नहीं है, लेकिन आजकल जो हो रहा है — जिसकी तरफ चिट्ठाकार ने इशारा किया है — वह हिन्दी को बहुत हानि पहुंचा रही है
— शास्त्री जे सी फिलिप
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.Sarathi.info
आपने सही कहा
हिन्दी के विषय पर मैने भी एक पोस्ट लिखी है जरा उसे भी देखें:
http://ankurthoughts.blogspot.com/2007/07/blog-post_23.html
बहुत अच्छा लिखा सुनील जी ने।
बिल्कुल आसान अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग उचित है, लेकिन हिन्दी के जो शब्द आसान हैं उनके लिए जबरदस्ती अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग क्यों किया जाए।
एकदम सही बातें उठाई लेखक ने, मैं जब भी ‘पिताजी’ शब्द का प्रयोग करता हूँ, लोग मेरी तरफ अजीब नजरों से देखते हैं।
सही कहा जी ,यहा भी देखे http://pangebaj.blogspot.com/2007/05/blog-post_29.html
इससे साफ होता है कि भाषाई तौर पर हम कितने गुलाम हैं ।
सागर में पढ़ाई के दौरान हम मित्र ऑटो वाले से कहते थे चलो विश्वविद्यालय ले चलो । तो वो जवाब में कहता था अच्छा अच्छा उनबरसिटी । ऐसी कओ ना यार ।
भारत के लिये यह एक अति मह्त्वपूर्ण मुद्दा होना चाहिये। इसकी खूब चर्चा होनी चाहिये। इसकी निन्दा की जानी चाहिये। इस गलत प्रवृति का प्रतिरोध किया जाना चाहिये।
कोई अपने पिता को ‘पिताजी’ कहते हुए शर्म महसूस करता है तो कोई मूतने को ‘बाथरूम’ कहकर!
ऐसे ही एक सज्जन डाक्टर के पास गये। डाक्टर ने पूछा, “कहिये, क्या कष्ट है?” वे बोले, “डाक्टर साब!, दो दिन से मेरे बाथरूम से पानी निकालने में बहुत परेशानी हो रही है।”
डाक्तर ने कहा, “तो मेरे पास क्यों आये हो, किसी सैनिटरी वाले के पास जाओ।”
एकदम सही लिखा है भाई… लेकिन जब “श्रीलंकन गवर्नमेण्ट ने इस बात से डिनाय किया है कि उसके ट्रूप्स जफ़ना में प्लॉट किये गये हैं”… तब इसे आप कौन सा समाचार कहेंगे, अंग्रेजी या हिन्दी ? लेकिन जब पढाने वाले को ही नहीं मालूम कि “दुध” और “आर्शीवाद” को सही कैसे लिखें तो वह बच्चों को क्या लेखन संस्कार देगा ?
लगता है कि अल्टीमेटली इंगलिश ही एक दिन हिन्दी की डेथ का रीज़न बनेगी. खैर, अब तो लॉट ऑफ पीपुल आर ट्राइंग देयर बेस्ट कि हिन्दी को फिर से रिवाइव किया जाये. लेट अस वेट एण्ड वाच.
हिन्दी वैसे तो काफ़ी कूल लैंगुएज है, बट आई फील मोर कंफ़ी एण्ड ऐट होमे विध इंगलिश. होप यू अण्डरस्टैंड. इंगलिश के वर्ड्स यूज़ करने के लिये सॉरी, हाँ!!
एनीवे, इतना अच्छा आर्टिकिल पब्लिश करने के लिये थैंक्स भी हाँ!!!.
– यंग इंडिया एसोसिएशन का एक मेम्बर
ये हाल हैं, अफ़लातूनजी. यह अफ़सोस तो होता ही है कि ‘उन्हें’ हिन्दी नहीं आती साथ में यह भी अफ़सोस होता है कि ढ़ंग की अंग्रेज़ी भी नहीं आती. ना घर के हैं ना घाट के.
आप ने बहुत सही मुद्दा उठाया है।आज हिन्दी की दशा सचमुच दयनीय है।
Very Nice Hindi Blog..Keep it up
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पिंगबैक: गाय नहीं , ‘काऊ’ : ले . सुनील | शैशव