Technorati tags: poem, bhavaniprasadmishra
[ कवि भवानीप्रसाद मिश्र ने आपात काल के खिलाफ़ कविताओं की त्रिकाल सन्ध्या का संकल्प लिया था । प्रति दिन तीन कविताओं द्वारा तानाशाही का विरोध प्रकट करते थे । फिर यह पुस्तक के रूप में ‘त्रिकाल सन्ध्या’ नाम से छपी । आपात काल के दौरान सेन्सरशिप की अवहेलना करने वाली पत्रिका बुनियादी यकीन तथा भूमिपुत्र (गुजराती ) में यह कविताएँ छपा करती थीं, रणभेरी जैसी साइक्लोस्टाइल्ड भूमिगत बुलेटिनों के अलावा । पत्रिकाओं को छापने वाले प्रेस को तालाबन्दी जैसी कार्रवाई झेलनी पड़ती थी । दोनों पत्रिकाएँ तब गुजरात से छपती थीं जहाँ स्व. बाबूभाई पटेल की गैर काँग्रेसी सरकार आपात काल के शुरुआती दिनों में रही ।
चिट्ठालोक के मौजूदा माहौल को देखते हुए मुझे त्रिकाल सन्ध्या से यह बाल-कविता देना उचित लगा । ]
चार कौए उर्फ चार हौए
बहुत नहीं सिर्फ चार कौए थे काले ,
उन्होंने यह तय किया कि सारे उड़ने वाले ,
उनके ढंग से उड़ें , रुकें , खायें और गायें,
वे जिसको त्योहार कहें सब उसे मनायें
कभी – कभी जादू हो जाता है दुनिया में
दुनिया – भर के गुण दिखते हैं औगुनिया में
ये औगुनिए चार बड़े सरताज हो गए
इनके नौकर चील , गरुड़ और बाज हो गए
हंस , मोर , चातक , गौरैयें किस गिनती में
हाथ बाँधकर खड़े हो गए सब विनती में
हुक्म हुआ , चातक पंछी रट नहीं लगाए
पिऊ – पिऊ को छोड़ें कौए – कौए गायें
बीस तरह की काम दे दिए गौरैयों को
खान – पीना मौज उड़ाना छुट भैयों को
कौओं की ऐसी बन आई पाँचों घी में
बड़े बड़े मनसूबे आए उनके जी में
उड़ने तक के नियम बदल कर ऐसे ढाले
उड़ने वाले सिर्फ रह गए बैठे ठाले
आगे क्या कुछ हुआ सुनाना बहुत कठिन है
यह दिन कवि का नहीं चार कौवों का दिन है
उत्सुकता जग जाए तो मेरे घर आ जाना
लंबा किस्सा थोड़े में किस तरह सुनाना
– भवानीप्रसाद मिश्र .
[ विद्याचरण शुक्ल , बन्सीलाल , सन्जय गाँधी तथा एक अन्य काँग्रेसी(कौन?कोई बताए) -‘चार कौए’ तथा ‘बीस तरह के काम’ से मतलब इन्दिरा गाँधी का बीस सूत्री कार्यक्रम । इसी बीस सूत्री कार्यक्रम का संघ के सरसंघचालक द्वारा समर्थन करने के बाद के बाद संघ के कार्यकर्ता छूटने लगे थे ।]
mauqe par ek achchhi kavita… shukriya iske liye… guzarish hai ki aap bhi trikaal sandhya ka sankalp lein…
कौओं की तो मौज ही मौज है आजकल ही नहीं हमेशा से..
आपातकाल की मेरे पास भी कुछ भीगी भीगी यादें है. कभी फुरसत में साझा करेंगे.
बहुत ही मजेदार कविता है; परन्तु चिट्ठालोक की तुलना आपातकाल से करना बेमानी होगा। आपात काल में तो निर्दोष भी सताये गये थे, चिट्ठालोक में मात्र दोषी को सजा मिली है।
सुन्दर कविता पढ़वाने के लिये धन्यवाद
आपकी कविता इस मौके के लिये एकदम सटीक है. सबसे बड़े जनतंत्र के बाशिंदे – हम भूल गये कि विरोध का हक ही जनतंत्र की सबसे पहली ज़रुरत है. एकाध कड़े (बुरे?) शब्दों से नाराज़ हो गये हम! हर स्तर (चाहे सामाजिक हो, या वयक्तिगत), हमारी सहनशीलता चुक गयी है. इसे फोरम को मैं स्वतंत्र नहीं मान सकता.
स्वतंत्रता की बानगी मैंने कुछ दिनों पहले देखी थी – फैरनहाइट 911 – एक वयक्ति ने राष्ट्राध्यक्ष पर बनाई डाक्युमेंट्री में इतना कुछ दिखाया, बताया और कहा, कि इस देश में होती तो शायद वही सिर फुटौवल मचती. हमारे यहां तो एकाध लड़कों के आर्कुट पर लिखे हुये कुछ गैर-ज़िम्मेदार से वाक्य ही परेशानी का सबब बन जाते हैं.
कुछ हम सीखें की एक स्वतंत्र फोरम क्या होता है.
अफलातून जी,
भवानीप्रसाद जी की यह कविता बहुत ही प्रभावकारी व्यंग्य है। बहुत अच्छी लगी।
किन्तु इसका नारद द्वारा हाल में की गयी कार्वाही से तुलना करना उपमा के नियमों के साथ मनमानी है। और आप द्वारा संघ के बारे में कही गयी अंतिम बात असत्य प्रतीत होती है; लगता है आप अंधेरे में रस्सी को सांप कहकर भ्रम पैदा करना चाहते हैं।
क्या बात है!
ढेर-सा गद्य जो बात नहीं कह पाता, वह बात यह कविता कहती है .
अनुशासन अच्छी चीज़ है . पर भगवान वैसा ‘अनुशासन पर्व’ फिर न दिखाए .
इधर नारद भी अनुशासनिक कार्रवाई तो कर ही चुका है . देखें उसका पर्व कैसे मनाता है .
सबको सन्मति दे भगवान .
अकबर अहमद डम्पी?.. वी पी सिंह?.. पायलट?.. सज्जन कुमार?..
अफलातून जी,
सबसे पहले ये कविता कब प्रकाशित हुई थी ये ज़रुर बताइये. कुछ लोग शायद सफाई ही देने में हमारा समय खराब दें.आपने तो कहीं लिखा भी नही पर कुछ साथी इसको नारद के प्रतिक्रिया स्वरुप देख रहे हैं जो दुर्भाग्यपूर्ण है. कहीं न कहीं इनके मन मे चोर है.. जो दोषी को सज़ा देने की बात कर रहे हैं.. ये ज़रुर लिखिये कि ये कविता किसी टापू पर लिखी गई कविता है…और इसका नारदजी के फैसले से कोई लेना देना नही है… कोई इस कविता को पढ कर अपने को कौवा ना समझे.. वैसे इस कविता को हम तक पहुंचाने के लिये धन्यवाद
पिंगबैक: इलाहाबाद गोष्ठी / स्फुट झलकियाँ /स्फुट विचार « समाजवादी जनपरिषद
पिंगबैक: इस चिट्ठे की टोप पोस्ट्स ( गत चार वर्षों में ) « शैशव
anya congressi jagmohan h