- साम्प्रदायिकता उभाड़ने वाली किसी भी दुष्प्रवृत्ति के शिकार हम खुद न हों , और समाज में साम्प्रदायिकता उभाड़ने वाली कोशिशों के खिलाफ़ खड़े हों , फिर चाहे ऐसी कोशिश हिन्दुओं के द्वारा हो या मुसलमानों के द्वारा हो या अन्य किसी भी धर्म को मानने वालों के द्वारा हो ।
- केन्द्र व राज्य सरकारों का कोई भी प्रतिनिधि किसी भी धर्म विशेष के अनुष्ठान में राज्य एवं शासन के प्रतिनिधि के रूप में शामिल नहीं हो , न ऐसे अनुष्ठानों को राज्य द्वारा किसी प्रकार की विशेष सहायता मिले , और न ही राजकीय उद्घाटन , शिलान्यास आदि के आयोजन किसी धर्म-विशेष के अनुष्ठान से शुरु हों । धर्म-निरपेक्ष राज्य की संवैधानिक घोषणा का यह सर्वथा उल्लंघन है । हम ऐसे आयोजनों के खिलाफ जनमत का दबाव पैदा करें ।
- एक धर्म की उपासना विधियों , उत्सवों ,पर्वों , के आयोजनों से दूसरे धर्मों की उपासना विधियों,उत्सवों-पर्वों में बाधा पहुँचे , ऐसी व्यवस्था क्यों चलनी चाहिए ? क्या मन्दिर, मस्जिद, गुरुद्वारा आदि धार्मिक केन्द्रों में लाउडस्पीकरों का उपयोग और उत्तेजनात्मक घोषणाओं का उग्र उद्घोष इसी तरह बराबर होते रहना चाहिए , जैसे आजकल हो रहा है ? नहीं । क्योंकि इससे हमारी भक्ति-भावना में वृद्धि नहीं होती , हमारी प्रतिक्रियात्मक , प्रतिशोधात्मक भावनाओं का इजहार होता है ।
- हम अपनी धार्मिक-साम्प्रदायिक भावनायें दूसरे पर थोपने की कोशिश न करें । हमारे विचार-आचार में तेज होगा तो वह दूसरों को भी प्रेरित करेगा , यहीं तक अपनी भावनाओं को मर्यादित रखें ।
- हम यह न भूलें कि कोई एक गलती करता है तो उसके जवाब में हम दस गलती करके अपना ही नुकसान करते हैं । अत: हम न गलती करेंगे , न गलती होने देंगे , न जुल्म करेंगे , न जुल्म सहेंगे की नीति पर चलें ।
- हम उन अखबारों , प्रचार-माध्यमों,नेताओं,संगठनों का बहिष्कार एवं विरोध करें , जो साम्प्रदायिकता के जहर को फैलाते हैं । अखबारों में छपने वाले ऐसे लेखों-टिप्पणियों का विरोध हम लिखित रूप में लेख-टिप्पणियाँ-सम्पादक के नाम पत्र लिखकर करें – जिनसे साम्प्रदायिकता का जहर समाज में फैलता हो ।इसके अलावा स्वतंत्र रूप से पर्चे छापकर करें तथा अन्य लोकशिक्षण के माध्यमों से साम्प्रदायिकता के विरुद्ध लोगों को जागृत-संगठित करें ।
- हम जो भी धर्म , जीवन-शैली ,उपासना पद्धति अपनाते हों ,अपनाएँ,लेकिन अपने से भिन्न दूसरे धर्मों , जीवन-शैलियों , उपासना – पद्धतियों के प्रति सहिष्णु एवं उदार रहें । हमारी इस वृत्ति से ही परस्पर संवाद-सम्बन्ध कायम रहेगा और संवादों-सम्बन्धों के आधार पर ही हम एक दूसरे की कमियों को , यदि होगी तो , दूर करने में सहायक होंगे ।
- आर्थिक , सामाजिक एवं सांस्कृतिक गैर-बराबरी समाज और राष्ट्र की सबसे बड़ी कमजोरी है। क्या हम इतिहास के इस तथ्य को नकार सकते हैं कि हमारी इसी सामाजिक कमजोरी के चलते भारतीय समाज और राष्ट्र कमजोर हुआ है , टूटा है,गुलाम हुआ है,हिंसा-प्रतिहिंसा का शिकार हुआ है ? यदि आर्थिक-सामाजिक-सांस्कृतिक- गैरबराबरी बनी रही , बढ़ती रही तो कोई भी धर्म-सम्प्रदाय भारतीय समाज-राष्त्र को विघटित होने से नहीं रोक पायेगा । पेट भरने , तन ढकने , सर छुपाने के लिए समुचित आवास व्यवस्था एवं शिक्षा- स्वास्थ्य आदि की प्राथमिक मानवीय जरूरतें पूरी करने की अनिवार्य मांग को धार्मिक-उन्माद उभाड़कर लम्बे अर्से तक टाला नहीं जा सकता है । सुदूर पूर्व से लेकर पश्चिम तक विभिन्न रूपों में यह मांगें तीव्र और खतरनाक रूप ले चुकी हैं । इसलिए जरूरी है कि समाज की इस कमजोरी को दूर करने का , मानवीय बराबरी की व्यवस्था लाने का राष्ट्रव्यापी संघर्ष तज करने में हम अपनी सक्रिय भूमिका निभायें ।
निवेदक
गुरुदर्शन सिंह , विनोद कुमार ( साम्यवादी ,छुद्र एवं द्वंद्व )
जगनारायण , डॉ. स्वाति , डॉ. सोमनाथ त्रिपाठी , अफ़लातून (समता संगठन)
रामचन्द्र राही ,चन्द्रभूषण,भगवान बजाज,डॉ. मारकण्डे सिंह(सर्वोदय कार्यकर्ता)
श्री दिनेशराय द्विवेदी , वरिष्ट अधिवक्ता , राजस्थान .
1992 में प्रकाशित.