[ बचपन में स्कूल में अल्लामा इकबाल की तीन कवितायें सीखी थीं | ‘जुगनू’ काफी पहले दे चुका हूँ , इसी चिट्ठे पर | ‘बच्चे की दुआ ‘ को आगाज़ में प्रस्तुत करूंगा , हालांकि तरन्नुम में जो क्लिप मिली है उसकी तर्ज जुदा है | आज यहाँ पेश है ‘परिंदे की फ़रियाद ‘ | उम्मीद है स्कूली बच्चों को यह सिखाई जाएगी | ]
परिंदे की फ़रियाद
आता है याद मुझको गुजरा हुआ ज़माना
वह बाग़ की बहारें , वह सबका चहचहाना
आज़ादियाँ कहां वह अपने घोंसले की
अपनी ख़ुशी से आना , अपनी से जाना
लगती है चोट दिल पे , आता है याद जिस दम
शबनम के आंसुओं पर कलियों का मुस्कुराना
वह प्यारी – प्यारी सूरत , वह कामिनी-सी मूरत
आबाद जिसके दम से था मेरा आशियाना*
आती नहीं सदायें* उसकी मेरी कफस* में
होती मेरी रिहाई ऐ काश ! मेरे बस में
क्या बदनसीब हूं मैं , घर को तरस रहा हूं
साथी तो हैं वतन में , मैं कैद में पडा हूं
आई बहार, कलियां फूलों की हंस रही हैं
मैं इस अंधेरे घर में किस्मत को रहा हूं
इस कैद का इलाही ! दुखड़ा किसे सुनाऊं
डर है यही कफस में मैं गम से मर न जाऊं
जब से चमन छुटा है यह हाल हो गया है
दिल गम को खा रहा है , गम दिल को खा रहा है
गाना इसे समझ के खुश हों न सुनने वाले
दुखते हुए दिलों की फ़रियाद यह सदा* है
आज़ाद मुझको कर दे ओ कैद करनेवाले !
मैं बेज़बां हूँ कैदी , तू छोड़कर दूआ ले
– अल्लामा इकबाल
[ आशियाना = घोंसला , सदाएं = आवाजें , कफस = पिंजरा , सदा = आवाज , बेज़बां =गूंगा ]