[ इब्ने इंशा पाकिस्तान में उर्दू के जाने-माने कवी व लेखक थे । इनका जन्म १५ जून १९२७ को पंजाब , पाकिस्तान में हुआ था और ११ जनवरी १९७८ को इनका देहांत हुआ । इब्ने इंशा की ख़ास पहचान इनकी लेखनी की तीक्ष्ण व्यंग्यात्मकता रही है चाहे वह कविता हो , कहानी हो या फिर यात्रा संस्मरण । स्रोत – ‘तालीम की लड़ाई ‘ (अखिल भारत शिक्षा अधिकार मंच का त्रैमासिक प्रकाशन ) ,संपर्क – talim.ki.ladai@gmail.com ]
इल्म बड़ी दौलत है ।
तू भी स्कूल खोल ।
इल्म पढ़ा ।
फीस लगा ।
दौलत कमा ।
फीस ही फीस ।
पढ़ाई के बीस ।
बस के तीस ।
यूनिफार्म के चालीस ।
खेलों के अलग ।
वेरायटी प्रोग्राम के अलग ।
पिकनिक के अलग ।
लोगों के चीखने पर न जा ।
दौलत कमा ।
उससे और स्कूल खोल ।
उनसे और दौलत कमा ।
कमाए जा, कमाए जा ।
अभी तो तू जवान है ।
यह सिलसिला जारी है ।
जब तक गंगा – जमना है ।
पढ़ाई बड़ी अच्छी है ।
पढ़ ।
बहीखाता पढ़ ।
टेलीफोन डाइरेक्टरी पढ़ ।
बैंक – असिसमेंट पढ़ ।
जरूरते-रिश्ता के इश्तेहार पढ़ ।
और कुछ मत पढ़ ।
मीर और ग़ालिब मत पढ़ ।
इकबाल और फैज़ मत पढ़ ।
इब्ने इंशा को भी मत पढ़ ।
वरना तेरा बड़ा पार न होगा ।
और हममें से कोई नताएज* का जिम्मेदार न होगा ।
– इब्ने इंशा
(नतीजा का बहुवचन नताएज )
आज के संदर्भ में बहुत सही है