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शब्द बदल जाएं तो भी

वे जान गए हैं

कि नहीं उछाला जा सकता

वही शब्द हर बार

क्योंकि उसका अर्थ पकड़ में आ चुका होता है

इसीलिए

वे जब भी आते हैं

उछाल देते हैं कोई और शब्द

गिरगिट के रंग बदलने की तरह

जब बदल जायें शब्द

तो अर्थ वही रहता है

शब्द बदल जायें तो भी

– राजेन्द्र राजन

   १९९५.

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जहाँ चुक जाते हैं शब्द : राजेन्द्र राजन

शब्दों में शब्द जोड़ते

मैं वहाँ आ पहुंचा हूं

जहां और शब्द नहीं मिलते

मैं क्या करूँ

अब मैं कैसे लिखूं

समय के पृष्ट पर

अपनी सबसे जरूरी कविता

शब्दों में शब्द जोड़ते

जहां चुक जाते हैं शब्द

मैं क्या करूं ?

क्या मैं वहीं खुद को जोड़ दूं ?

मगर

क्या अपने शब्दों जैसा मैं हूं ?

– राजेन्द्र राजन

   १९९५.

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