Tag Archives: hindi

गूगल की तख्ती

    किसी साइबर कैफे से हिन्दी में पोस्ट करने की नौबत आ जाए , जहां हिन्दी में लिखने की सुविधा ना हो | तब आप क्या उपाय करते हैं ? पूरी पोस्ट न लिखनी हो , सिर्फ टीपना हो | ब्लोगर    वाले चिट्ठेकार सीधे देवनागरी में लिखते होंगे | ऐसा न होने पर , निश्चित ही आप किसी ‘तख्ती’ किस्म की सुविधा का इस्तेमाल करते होंगे | मैं अंकित जैन की तख्ती का प्रयोग करता हूं | रोमन में लिखी टिप्पणियों को देख कर थोड़ी सी कोफ्त जरूर होती है अथवा लिखने वाले की मजबूरी का ख्याल आ जाता है |

    आज पता चला की गूगल की भी तख्ती उपलब्ध है | बाराहा की भांति गूगल ने भी कुछ अन्य भारतीय भाषाओं में भी यह सुविधा मुहैय्या कराई है | इस तख्ती का प्रयोग करने के उपरांत आप इसे छाप भी सकते हैं (  प्रिंट आउट भी हासिल कर सकते हैं ) | नेट पर हिन्दी के बढ़ रहे प्रयोग की वजह से गूगल को यह सुविधा देनी पडी , मुझे लगता है | आप को कैसी लगी यह तख्ती ?

यह पोस्ट उक्त  साधन   के प्रयोग से लिखी गयी है |

Advertisement

11 टिप्पणियां

Filed under blogging, hindi

आमीन , गुलाब पर ऐसा वक्त कभी न आये : भवानी प्रसाद मिश्र

Technorati tags: , , , , ,

गुलाब का फूल है

हमारा पढ़ा – लिखा

मैंने उसे काफी

उलट-पुलट कर देखा है

मुझे तो वह ऐसा ही दिखा

 

सबसे बड़ा सबूत

उसके गुलाब होने का यह है

कि वह गाँव में जाकर

बसने के लिए

तैयार नहीं है

 

गाँव में उसकी

प्रदर्शनी कौन कराएगा

वहाँ वह अपनी शोभा की

प्रशंसा किससे कराएगा

 

वह फूलने के बाद

किसी फसल में थोड़े ही

बदल जाता है

मूरख किसान को फूलने के बाद

फसल देने वाला ही तो भाता है

 

गाँव में इसलिए ठीक है

अलसी और सरसों और

तिली के फूल

जा नहीं सकते वहाँ कदापि

गुलाब और लिली के फूल

 

बुरा नहीं मानना चाहिए

इस गुलाब – वृत्ति का

गाँव वालों को

क्योंकि वहाँ रहना चाहिए सिर्फ ऐसे हाथ – पाँव वालों को

 

जो बो सकते हैं

और काट सकते हैं

कुएँ खोद सकते हैं

खाई पाट सकते हैं

और फिर भी चुपचाप

समाजवाद पर भाषण सुनकर

वोट दे सकते हैं

गुलाब के फूल को

और फिर अपना सकते हैं

पूरे जोश के साथ अपनी उसी भूल को

 

याने जुट जा सकते हैं जो

उगाने में अलसी और

सरसों  और तिली के फूल

गुलाब और लिली के फूल

तो भाई यहीं शांतिवन में रहेंगे

 

बुरा मानने की इसमें

कोई बात नहीं है

बीच – बीच में यह प्रस्ताव कि गुलाब वहाँ जा कर

चिकित्सा करे या पढ़ाये

पेश करते रहने में हर्ज नहीं है

मगर साफ समझ लेना चाहिए

गुलाब का यह फर्ज नहीं है

कि गाँवों में जाकर खिले

अलसी और सरसों वगैरा से हिले-मिले

और खोये अपना आपा

ढँक जाये वहाँ की धूल से

सरापा

 

और वक्तन बवक्तन

अपनी प्रदर्शनी न कराये

आमीन , गुलाब पर ऐसा वक्त कभी न आये

 

– भवानी प्रसाद मिश्र

( तरुणमन , वर्ष ३ , अंक ९ , १९७३ )

16 टिप्पणियां

Filed under hindi poems