साम्प्रदायिकता क्या है? उसके खतरे क्या हैं ?

  1. साम्प्रदायिकता है – अपनी पूजा-पाठ-उपासना-विधियों , खान-पान,रहन-सहन के तौर-तरीकों , जाति-नस्ल आदि की भिन्नताओं को ही धर्म का आधार मानना तथा अपनी मान्यता वाले धर्म को सर्वश्रेष्ठ और दूसरी मान्यता वाले धर्मों को निकृष्ट समझना , उनके प्रति नफरत , द्वेष-भाव पालना और फैलाना ।अपने लिए श्रेष्ठता और दूसरों के प्रति निकृष्टता का यही भाव हमारे सामाजिक विघटन का मूल कारण है , क्योंकि इससे आपसी सामाजिक रिश्ते टूटते हैं । परस्पर शंका-अविश्वास के बढ़ने से सामाजिक विभाजन इतना अधिक हो जाता है कि अलग-अलग धर्मों को मानने वालों की बस्तियाँ एक दूसरे से अलग-थलग होने लगती हैं । यह अलगाव कई आर्थिक, राजनीतिक , सांस्कृतिक कारणों से जुड़कर देश के टूटन का कारण बनता है ।
  2. अपने लिए श्रेष्ठता और दूसरों के प्रति निकृष्टता का यही भाव हमारे सामाजिक विघटन का मूल कारण है , क्योंकि इससे आपसी सामाजिक रिश्ते टूटते हैं । परस्पर शंका-अविश्वास के बढ़ने से सामाजिक विभाजन इतना अधिक हो जाता है कि अलग-अलग धर्मों को मानने वालों की बस्तियाँ एक दूसरे से अलग-थलग होने लगती हैं । यह अलगाव कई आर्थिक , राजनीतिक , सांस्कृतिक कारणों से जुड़कर देश के टूटन का कारण बनता है ।
  3. हमारा समाज , हमारा देश एक बार इस प्रकार की अलगाववादी-प्रवृत्ति का शिकार होकर विघ्हतन के अत्यन्त दुखान्त दौर से गुजर चुका है । क्या हम उसे फिर फिर दोहराया जाना देखना-भोगना चाहते हैं ? यदि नहीं तो फिर धर्म के आधार पर राज्य और राष्ट्र की बात जिस किसी भी धर्म वाले के द्वारा क्यों न कही जाती हो , हम उसका डटकर विरोध क्यों नहीं करते ? सोचिये , क्या धर्म के नाम पर राष्ट्र की बात कहने या उसका समर्थन करने से अन्तत: हम उस मान्यता के ही पक्षधर नहीं बनते , जिसमें धर्म को अलग राष्ट्र का आधार माना गया था और जिस मान्यता के कारण भारत विभाजित हुआ था ?
  4. जब धर्म के नाम पर राष्ट्र बनेगा , तो नस्ल , जाति ,भाषा आदि के आधार पर राष्ट्र बनने से कौन रोक सकेगा ? कैसे रोक सकेगा ? तो फिर , इतनी विविधता वाले वर्तमान भारतीय राष्ट्र की तस्वीर क्या होगी ? धर्म पर आधारित राज्य-राष्ट्र की बात करने वाले या उनका समर्थन करने वाले कभी इस पर गौर करेंगे ? धर्माधारित राज्य-राष्ट्र की मांग करना भारतीय समाज एवं राष्ट्र के विघटन का आवाहन है । और वास्तविकता तो यह है कि धर्माधारित राष्ट्र राज्य-राष्ट्र की माँग के पीछे अनेक आर्थिक , राजनीतिक निहित हित साधने के लक्ष्य छिपे होते हैं ।

क्यों बढ़ रही है यह साम्प्रदायिकता ?

  1. धर्मों के उन्माद फैलाकर सत्ता हासिल करने की हर कोशिश साम्प्रदायिकता को बढ़ाती है , चाहे वह कोशिश किसी भी व्यक्ति , समूह या दल के द्वारा क्यों न होती हो । थोक के भाव वोट हासिल करने के लिए धर्म-गुरुओं और धार्मिक भावनाओं का इस्तेमाल लगभग सभी दल कर रहे हैं । इसमें धर्म निरपेक्षता की बात कहने वाले राजनीतिक दल भी शामिल हैं । इन दलों ने चुनाव में साम्प्रदायिक दलों के साथ समझौते भी किए हैं और सत्ता हासिल करने के लिए समझौते भी किए हैं , सत्ता में इनके साथ साझीदारी की है । यदि धर्म निरपेक्षता की बात कहने वाले दलों ने मौकापरस्ती की यह राजनीति नहीं की होती तो धर्म-सम्प्रदायाधारित राजनीति करने वालों को इतना बढ़ावा हर्गिज़ नहीं मिलता । जब धर्म-सम्प्रदाय की रजनीति होगी तो साफ़ है कि छद्म से अधिक खुली साम्प्रदायिकता ताकतवर बनेगी।
  2. पूँजीवादी शोषणकारी वर्तमान व्यवस्था के पोषक और पोषित – वे सभी लोग साम्प्रदायिकता बढ़ाने में सक्रिय साझीदार हैं , जो व्यवस्था बदलने और समता एवं शोषणमुक्त समाज-रचना की लड़ाइयों को धार्मिक-साम्प्रदायिकता उन्माद उभाड़कर दबाना और पीछे धकेलना चाहते हैं । हमें याद रखना चाहिए कि धर्म सम्प्रदाय की राजनीति के अगुवा चाहे वे हिन्दू हों , मुसलमान हों , सिख हों , इसाई हों या अन्य किसी धर्म को मानने वाले , आम तौर पर वही लोग हैं , जो वर्तमान शोषणकारी व्यवस्था से अपना निहित स्वार्थ साध रहे हैं – पूँजीपति , पुराने राजे – महाराजे , नवाबजादे , नौकरशाह और नये- नये सत्ताधीश , सत्ता के दलाल ! और समाज का प्रबुद्ध वर्ग , जिससे यह अपेक्षा की जाती है कि साम्प्रदायिकता जैसी समाज को तोड़ने वाली दुष्प्रवृत्तियों का विरोध करेगा , आज की उपभोक्ता संस्कृति का शिकार होकर मूकदर्शक बना हुआ है ,अपने दायित्वों का निर्वाह करना भूल गया है !
  3. और , हम-आप भी , जो इनमें से नहीं हैं , धार्मिक-उन्माद में पड़कर यह भूल जाते हैं कि भविष्य का निर्माण इतिहास के गड़े मुर्दे उखाड़ने से नहीं होता । अगर इतिहास में हुए रक्तरंजित सत्ता , धर्म , जाति , नस्ल , भाषा आदि के संघर्षों का बदला लेने की हमारी प्रवृत्ति बढ़ी , तो एक के बाद एक इतिहास की पर्तें उखड़ेंगी और सैंकड़ों नहीं हजारों सालों के संघर्षों , जय-पराजयों का बदला लेनेवाला उन्माद उभड़ सकता है ।फिर तो , कौन सा धर्म-समूह है जो साबुत बचेगा ? क्या हिन्दू-समाज के टुकड़े-टुकड़े नहीं होंगे ? क्या इस्लाम के मानने वाले एक पंथ के लोग दूसरे पंथ बदला नहीं लेंगे ? दुनिया के हर धर्म में पंथभेद हैं और उनमें संघर्ष हुए हैं । तो बदला लेने की प्रवृत्ति मानव-समाज को कहाँ ले जायेगी ? क्या इतिहास से हम सबक नहीं सीखेंगे ?  क्या क्षमा , दया , करुणा , प्यार-मुहब्बत , सहिष्णुता ,सहयोग आदि मानवीय गुणों का वर्द्धन करने के बदले प्रतिशोध , प्रतिहिंसा , क्रूरता , नफ़रत , असहिष्णुता , प्रतिद्वन्द्विता को बढ़ाकर हम अपनी सांस्कृतिक विरासत को संभालना और बढ़ाना चाहते हैं ?
  4. वक्त आ गया है कि हम भारतीय समाज में बढ़ती विघटनकारी प्रवृत्तियों को गहराई से समझें और साम्प्रदायिकता के फैलते जहर को रोकें । [ जारी ]
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30 टिप्पणियां

Filed under communalism

30 responses to “साम्प्रदायिकता क्या है? उसके खतरे क्या हैं ?

  1. bahut achchha vishleshan . apke alekh se samprdayik logon ko sabak lena chahiye….

  2. सहमत हूं आपसे सौ प्रतिशत।इसके बीज राष्ट्र निर्माण के समय ही अंकुरित हि गये थे और अनुकूल राजनैतिक वातावरण,असमनता के खाद-पानी से फ़ल-फ़ूल कर इसकी फ़सल सारे देश मे लहलहा रही है।अफ़सोस कि सालों इससे दूर रहने के बाद ब्लाग-परिवार का सदस्य बनते ही एकाध बार जाने-अंजाने मे मै खुद इसका पोषक बना हूं।इस बात का मुझे अफ़सोस है लेकिन गस्सैल स्वाभाव की गुलामी से चाह कर भी मुक्त नही हो पाया हूं और सिर्फ़ वही एक कारण है जो मुझसे गलतियां हुई।आप से कंही भी असहमत नही।क्षमा सहित ये टिपण्णी कर रहा है जिसका लगता है मुझे अधिकार ही नही है।

  3. अच्छा लिखा है आपने -मगर मनुष्य मूलतः कबीलाई प्रवृत्ति -वृत्ति का आदमी है -धर्म तो उसकी इसी वृत्ति पर अंकुश के लिए आकांक्षित था मगर कुछ तथाकथित धर्मों में यह न होकर कबीलाई वृत्ति को होत्साहित करने को कौन कहे – उभारा जा रहा है !

  4. “धर्म के आधार पर राज्य और राष्ट्र की बात जिस किसी भी धर्म वाले के द्वारा क्यों न कही जाती हो , हम उसका डटकर विरोध क्यों नहीं करते ?”

    आशा आप अपनी बात पर अमल करेंगे. भारत सबका है, जो नहीं समझते उनका विरोध आप द्वारा हुआ हो ऐसा याद नहीं. हाँ हिन्दुत्त्व का विरोध जरूर पढ़ा-सुना है, मगर यह एक तरफा हुआ, जो कि साम्प्रदायिकता ही है.

  5. “क्या इतिहास से हम सबक नहीं सीखेंगे ? “”

    कमसे कम अपनी जमीन गवाँ कर तो अब सीख ले ली लेनी चाहिए. साम्प्रदायिकता ने देश को बाँटा है. उसे पनपने नहीं देना है, चाहे आप पर कट्टता का आरोप ही क्यों न लगे.

  6. rachnasingh

    hindustaan mae ek constitution haen uska paalan karey sab dharm , har desh mae ek kanun hota haen yahaan bhi har indian kae liyae ek hi kanun ho

    bematalb hindu dharm ko bhi neecha deekhane ki kyaa jarurat haen

  7. virendra jain

    सांप्रदायिक गिरोह द्वारा जिस मंच को लगातार प्रदूषित किया जा रहा था वहां आपका ब्लॉग और उसकी पोस्ट देख कर संतोष मिला

  8. आपसे शतप्रतिशत सहमत हूँ।धन्यवाद

  9. बड़ी अच्छी, सुन्दर, मुलायम, किताबी बातें आपने बताई हैं, जो कि लगभग सभी लोग जानते हैं… सवाल है कि जब इन पर अमल की बारी आती है तब – उपदेश, नसीहत, सीख, कानून की भाषा, संयम, यानी कि सभी कुछ हिन्दुओं को और उन्हीं से अपेक्षित किया जाता है…।
    आप जो स्थिति बता रहे हैं वह एक “आदर्श समाज” की स्थिति हो सकती है, आप खुद बतायें कि विश्व के किस देश में आज की तारीख में “आदर्श” व्यवस्था चल रही है?
    “साम्प्रदायिकता के बीज की जनक” कांग्रेस के बारे में आपके विचार भी जानना चाहेंगे…। “साम्प्रदायिकता” को हराने के चक्कर में आज जनता भीषण महंगाई तले पिस रही है… यदि साम्प्रदायिकता हटाने के लिये इतनी महंगी कीमत चु्कानी पड़ती है, तब नहीं चाहिये हमें ऐसी “धर्मनिरपेक्ष व्यवस्था”(?), जो हमें पिछले 5 साल लूट चुकी और अब अगले 5 साल भी लूटेगी, लेकिन क्योंकि “साम्प्रदायिकता” से लड़ना है आपकी प्राथमिकता है, इसलिये आपकी जय हो…। लगे रहिये, ताकि कांग्रेस आराम से अगले 50 साल भी शासन कर सके… :)

    • Uma Shankar Parashar

      main aapki baato se bilkul sehmat hoon. Darasal ye sabhi aproksh roop se congress, uske so called secular allied group aur muslim ke hi pakshdhar hain, jo chahte hain ki hindu sada pitta hi rahe, kabhi bhi sangthit ho kar deshvirodhi takto aur mullon ko unka samuchit jawab na den. Jab jab hinduon par atyachar hote hain, us samay ye sabhi munh mein dahi zama kar clubs mein dance kar rahe hote hain. Lekin jab kabhi hindu sangthit hone lagta hai aur muslims ko gahe bagahe tit for tat ka jawab milne aur is muslim samuday ko kabhi hinduon ki taraf se gambhir khatra nazar aane lagta hai, tab inke munn mein bhi bhari becaeni hone lagti hai aur us samay ye lobby shanti path ka raag alapna shuru kar deti hain. Lekin afsos to is baat ka bhi hai ki inke ye sabhi bhashan bhi kewal hinduon ke liye hi hote hain.

  10. Sriman ji,

    sampradayikta se hi desh pareshan hai aur desh ki ekta aur akhandta khatre mein hai aur jab sampradayikta se ladne ki baat uthti hai to vah log alag raag alapna shuru kar dete hai desh ki unko katai parvaah nahi hoti hai kyonki hamare desh mein pehla sampradayik sangathan german k naji vichardhara se prabhavit hokar bana tha .iske pashchat british samrajyvaad ki chakri karte rahe hai log aur ab sampradayik shaktiyo ko american samrajyvaad poshit kar raha hai.

  11. सुरेश चिपलूनकर के पहले दो पैरा से सहमत.

  12. सही बात…और उचित प्रश्न…उठाये हैं आपने…
    जाहिर है लोहा तो लेना ही पड़ेगा…

    परहित सरस धरम नहीं भाई, परपीड़ा सम नहीं अधमाई….

  13. सुरेश चिपलूनकर जी के नीचे के दो पैरा से सहमत |

  14. पिंगबैक: इस चिट्ठे की टोप पोस्ट्स ( गत चार वर्षों में ) « शैशव

  15. Mangesh Kritya

    masssst essay hai. Thanks a lot “the writer”.

    • विनय

      पंजाबी, वैश्य, ब्राहमिन, सिख, इसाई, सैनी, जाट व गुर्जर धर्म के लोगो ने अपने को अलग अलग समाज के रूप में पहचान देकर व समय समय सभा बुला कर अपने ही समाज के उत्थान की जो बात की है क्या ये साम्प्रदायिकता का एक छिपा रूप है

      इसके लिये हमारे नेताओं ने ऐसी सभाओ में जा लोगो की सम्भोदित कर इस तरह की सोच को सही का प्रमाण पत्र अप्रत्यक्ष रूप में पिछले दरवाजे से अपने स्वार्थ के लिये देने का काम किया है ऐसे नेताओं व पर्टियो को देश द्रोही घोषित कर चुनाव के अयोग्य कर देना चाहिए सरकार को इस आधार पर किसी विशेष वर्ग को अल्पसंखक घोषित कर आरक्षण देने का भी कोई अधिकार नही होना चाहिये क्या ये साम्प्रदायिकता फैलाने का एक छिपा रूप है और भारत की एकता व सम्प्रभुता को खतरे में डालना नहीँ है

  16. kanika

    It was a nice help . I could understand the topic really well ! :)

  17. saumya

    thank u very much!!! got A in my project…….thanksss!!!!

  18. faiz alam

    Hamare desh main rajneta kuch vote pane ke liye logo ki jaan se khel rhe hai….or sampradaikta ko bda rhe hai lekin hum bhartiyon ko mil kar desh ko bachana or desh ko education and economic field main number banana hai jis karan desh ki janya or garib bacchon ko aage badne ko mouka mil sake.. JAI HIND JAI BHARAT

  19. JAHAN TAK MUJHE LAGATAA HAI AAM AADMI KE ZINDAGI MEI SAMPRADAYIKTA NAAM KI KOI CHIZ NAHI HAI, SAMPRADAYIKTAA AB KEVAL RAJNITI MEI PRAYOG HONE WALA SHABD RAH GAYA HAI.

  20. surendra kumar

    sampradayvad ek prakar ki dharmic andh bhakti hai

  21. Ritesh

    Ab mujhe pata sampradaikta kya hai
    Ager log hamare pyare Bharat me Dharam ke Naam pr ladenge aur Rajneeti karenge TB tk ye Desh age nhi ja skta
    Roko ye sb

  22. Apse me puri tarah sahmat hu or baki log bhi is se sahmat hai ise hame milkar rokna hoga nahi to fir se gulami kisi janjiro me ane wali pideya gujragi

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