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सफ़रनामा (२) : सागर नाहर

मैंने जब हिन्दी में ब्लॉगिंग शुरु की उस समय से इस समय की कुछ दशा ही और है ! वैचारिक मतभेद तब भी थे लेकिन गोलबन्दियों के खाँचे खिड़कियों की गुंजाईश लिए हुए थे । एक बार सागर नाहर ने चिट्ठेकारी बन्द करने की घोषणा की लेकिन अनूप शुकुल के समझाने पर मान भी गए थे।

सिकन्दराबाद में अपने बूते एक नया व्यवसाय शुरु करने और उसे अच्छी तरह जमाने में सागर ने जो काबीलियत लगायी वह काबिले तारीफ़ है । यानि राजस्थान और गुजरात में गुजारे बचपन और किशोरावस्था से अलग एक परिवेश में एक नई तकनीक से जुड़ा व्यवसाय चुनने का जोख़िम उठाया – अपना साइबर कैफ़े खोलकर । तरुणाई का एक अहम लक्षण जोख़िम उठाने का साहस भी तो है !

नौजवानी का एक अन्य लक्षण अपने से पहले वाली पीढ़ी के जीवन मूल्यों को आँखें मूँद कर स्वीकार न करने में भी प्रकट होता है । सन्त विनोबा , लोकनायक जयप्रकाश नारायण , गोकुलभाई भट्ट और सिद्धराजजी जैसे दिग्गज गाँधीजनों का सानिध्य पाए सागर नाहर के पिता आदरणीय श्री शांतिचन्द्रजी नाहर राजस्थान के राजसमद क्षेत्र के प्रमुख खादी कार्यकर्ता रहे हैं । सागर ने अपने कैफ़े से मेरी उनसे फोन पर बात करवाई । श्री शांतिचन्द्रजी ने बताया कि राजस्थान के दौरे पर एक बार जब जेपी आए हुए थे तब वे किसी शॉर्ट हैन्ड जानने वाले को खोज रहे थे । श्री शांतिचन्द्रजी ने कहा कि मैं शॉर्ट हैन्ड नहीं जानता लेकिन प्रयास करूंगा । सामग्री जब जेपी के समक्ष प्रस्तुत की गयी तब उन्होंने पीठ थपथपाई । सागर की लिखावट भी इतनी सुन्दर है कि टाइप किए हुए से सुन्दर लगती है । उसकी लिखावट देखकर स्कूल में अच्छी लिखावट के लिए पुरस्कार देने की शुरुआत की गई । पीढ़ियों के बीच जीवन मूल्यों के फरक का उल्लेख कर दूँ। पिछले साल श्री सुरेश चिपलूणकर जब हैदराबाद पधारे थे तब उभयजनों की रुचि-अनुरूप नाथूराम गोड़से के भाई गोपाल गोड़से की लिखी किताब ’गाँधी – वध क्यों ?’ सागर को भेंट कर गये थे ।

सागर को हिन्दी फिल्म संगीत सुनने और संग्रह करने में गहरी रुचि है । जब भी  हजारों गीतों का कोई संग्रह उनके हाथ लगता है तो सागर उसे ’खजाने’ की संज्ञा देते हैं । ऐसे कई खजानों के साथ सागर गीतों का सागर जुटा चुके हैं । फिर ऐसे खजाने और सागर जुटाने वाले कई लोगों से सागर की मैत्री भी गहरी है ।

सागर नाहर

सागर नाहर

सागर के खजाने में सिर्फ़ गीत नहीं हैं । गाँधी द्वारा दक्षिण भारत में राष्ट्रभाषा के प्रचार के उद्देश्य से बनाई समिति की हैदराबाद इकाई द्वारा किसी स्पर्धा में पारितोषिक के रूप में किसी महिला को तीसरे या चौथे दशक में कभी दी गयी मुंशी प्रेमचन्द की कहानियों के संग्रह की एक जर्जर प्रति ! सागर ने एक रद्दी-पस्ती खरीदने वाली दुकान से उसे हासिल किया है । सागर मुझसे अच्छी गुजराती जानते हैं । ’बाराहा” अपने कम्प्यूटर पर चढ़ाने के बाद मैं कभी कभी सागर से गुजराती में चैटिया कर उससे गुजराती जानने की हूं-कारी भरवाता रहा हूँ । सागर का गुजराती-प्रेम भी गजब है । गुजरात से आये ’केसर आम’ यदि गुज्जू – अखबार में पैक हों तो उस पृष्ट को भी सागर संभाल कर रख लेते हैं पढ़ने के लिए ।

हैदराबाद से छपने वाले हिन्दी अखबार(शायद ’मिलाप”) में सागर लिखते रहते हैं । मैंने उन्हें बताया कि लोहिया के भाषण और किताबें भी यहीं छपती थी । स्व. बद्रीविशाल पित्ती द्वारा। हैदराबाद के हिन्दी अखबार में सागर ने पित्तीजी के बारे में पढ़ रखा था । उत्तराखण्ड की किसी वादी में लोहिया ने जब हुसैन को लैण्डस्केप बनाते देखा था तब उनसे कहा था कि इस मुल्क के मानस में राम-कृष्ण-शिव की कहानियाँ अंकित हैं , उन्हें अपना विषय बनाओ । हुसैन की महाभारत और रामायण की श्रृंखला की नुमाईश पहले पहल हैदराबाद की सड़कों और गलियों में साइकिल रिक्शों पर सजा कर दिखाई गयी थी ।

लोहिया की साँस्कृतिक और सियासी चेतना से लैस साहित्यिक पत्रिका ’कल्पना’ , दल के मुखपत्र जन और मैनकाईण्ड भी हैदराबाद से छपते थे तब सच्चिदानन्द सिन्हा ,किशन पटनायक,ओमप्रकाश दीपक,अशोक सेक्सरिया जैसे उनके साथी भी इसी शहर में रहते ।

हैदराबाद में मेरे परस्पर विलोमी विचार वाले दो मित्र – लाल्टू और सागर दोनों पिछले दिनों हुए चुनावों में आन्ध्र प्रदेश के एक नये दल से प्रभावित हुए थे । यह दल है नई राजनैतिक संस्कृति स्थापित करने के प्रमुख घोषित मकसद से बनी लोक सत्ता पार्टी । संस्थापक हैं पूर्व नौकरशाह जयप्रकाश नारायण । आन्ध्र विधान सभा की एक सीट यह दल जीता है । इस सीट पर  स्वयं जयप्रकाश नारायण जीते हैं । उनके कार्यकर्ता तेलुगु और अंग्रेजी में परचे ले कर जब सागर नाहर के कैफ़े में चुनाव के दरमियान आये थे तब उनसे हिन्दी में भी परचे छापने की माँग सागर ने की थी ।

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आरक्षित सफ़र और असुरक्षित संस्थान

दक्षिण में दोनों प्रकार के आरक्षण के प्रति चेतना अधिक है । नौकरियों में अधिक पहले से आरक्षण होने के कारण दोनों प्रकारों के आरक्षण के प्रति परिपक्वता भी लाजमी तौर पर वहाँ अधिक है । आरक्षण के दो प्रकारों से मेरा आशय नौकरियों तथा रेल के आरक्षण से है । उत्तर में आम तौर पर रेल के आरक्षण के पक्षधरों के गले नौकरियों में आरक्षण नहीं उतरता था । बनारस – पटना से चेन्नै – बंगलुरु – हैदराबाद जाने वाली गाड़ियों में  दो महीने पहले कराये गये आरक्षण में आप प्रतिक्षा सूची में पहले – दूसरे नम्बर पर ही क्यों न रहे हों , गाड़ी छूटने के वक्त तक यथास्थिति के बरकरार रहने की संभावना ही ज्यादा रहती है । इस परिस्थितिवश हैदराबाद से शुरु होने वाली यात्रा को दो दिन टालना पड़ा तथा भारतीय अभियांत्रिकी सेवा में फँसे एक प्रिय मित्र की मदद लेनी पड़ी ।

हैदराबाद स्थित इन्टर्नैशनल इन्स्टीट्यूट ऑफ़ इनफ़ॉर्मेशन टेक्नॉलॉजी में बायो इन्फ़ॉर्मैटिक्स में शोध के लिए मेरी पत्नी डॉ . स्वाति को पाँच महीने रहना है । कभी जिला मुख्यालय बनाने के लिए चुनी गयी इस जगह पर कुछ सरकारी भवन बन भी चुके थे परन्तु खुद को सूबे का मख्य मन्त्री के बजाए सूबे का सी.ई.ओ. कहलाना पसंद करने वाले चन्द्राबाबू नायड़ू ने इसे निजी क्षेत्र के इस उच्च शिक्षण शोध संस्थान को बनाने के लिए सौंप दिया था । इस संस्थान के परिसर के एक बड़े हिस्से में एक डीनॉसॉर-सी लम्बी – चौड़ी इमारत का कंकाल खड़ा था । सत्यम इन्फ़ो के मालिकान जब से जेल प्रवास में हैं तब से निर्माण कार्य बन्द है ! उनके चन्दे से इसे बनना था ।

बहरहाल , कानपुर आई.आई.टी. के ’मजदूर-किसान-नीति” से जुड़े जो युवा बाद में ’पीपल्स पैट्रियॉटिक साइंस  एण्ड टेक्नॉलॉजी’ तथा ’लोक-विद्या” से जुड़े , उनमें से एक प्रमुख वैज्ञानिक – प्रोफ़ेसर अभिजीत मित्रा और कवि-चिट्ठेकार प्रोफ़ेसर हरजिन्दर सिंह उर्फ़ लाल्टू इसी संस्थान में सेवारत-शोधरत हैं। विदेशों से पीएच.डी के बाद भारत लौटने की इच्छा रखने वाले कई युवा इस संस्थान में बतौर शिक्षक जुड़े हैं – संस्थान की यह एक सकारात्मक उपलब्धि है ।

हैदराबाद के संगीत प्रेमी चिट्ठेकार सागर नाहर से मुझे मिलना था । उस बाबत अपने गीतों वाले चिट्ठे ’आगाज़’ पर लिखना उचित रहेगा ।

चलते वक्त लाल्टू की कहानियों का संग्रह ’घुघनी’ और उनकी सुन्दर लिखावट में १४ कवितायें पाईं ।

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