विविध भारती के श्रोताओं के लिए एक बुझौव्वल

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    हिन्दी फिल्मी गीत पूरे देश में सुने जाते हैं । अहिन्दी भाषी सूबों में भी उनके श्रोताओं की कमी नहीं है । नए गीतों में लोकप्रिय हुए गीत एक साथ पूरे देश में बजते है , सुने जाते हैं और सुरे – बेसुरे ढंग से गुनगुनाए जाते हैं । ऐसे गीतों के बारे में पिपरिया ( म. प्र. ) के मेरे रसिक मित्र गोपाल राठी कहते हैं , ” इस दौर का यह ही ‘राष्ट्र गीत’ है” ।

    विविध भारती आकाशवाणी की अत्यन्त लोकप्रिय प्रसारण सेवा है । इस साल विविध भारती की स्वर्ण जयन्ती मनाई जा रही है । इस उपलक्ष्य में कई नए कार्यक्रम प्रस्तुत किए जा रहे हैं । महानगरों में निजी एफ़.एम. रेडियो के शुरु होने के बाद विविध भारती ने कार्यक्रमों में विविविधता लाने के सफल प्रयास किए हैं । पिछले साल से शुरु फोन-इन फरमाइश कार्यक्रम में देश के सुदूर कोनों में बैठे श्रोता से उद्घोषक की संक्षिप्त बात होती है और उनकी पसन्द का गीत भी सुनाया जाता है । मुझे यह कार्यक्रम बेहद पसन्द है । विविध सामाजिक पृष्टभूमि के श्रोता इस संक्षिप्त बतकही के प्रसारण से अत्यन्त उत्साहित रहते हैं । अपने काम -धन्धे ,अपने गाँव – कस्बे के बारे में उद्घोषक द्वारा पूछे गए सहज सवालों के सहज उत्तर देते वक्त उत्साह और उत्तेजना प्रकट होती है । कारीगर या दुकानदार या गृहणियाँ या बेरोजगार तरुण रेडियो पर अत्यन्त सामान्य सूचनाएँ दे रहे होते हैं फिर भी इस मुल्क और समाज की विविधता को जो अभिव्यक्ति मिलती है उसे सुन कर, उनकी खुशी का अन्दाज लगाते हुए मेरी आँखें भर आती हैं ।

    बहरहाल , विविध भारती के स्वर्ण जयन्ती वर्ष के उपलक्ष्य में बतौर श्रोता यहाँ एक बुझौव्वल आयोजित कर रहा हूँ । कम्पनियों द्वारा आयोजित स्पर्धाओं में जैसी बन्दिश रहती है उसका अनुसरण कर चिट्ठेकार  युनुस ख़ान जैसे विविध भारती से सीधे जुड़े साथी इस बुझौव्वल में हिस्सा लेने के पात्र न होंगे । अलबत्ता झुमरी तलैय्या और राजनदगाँव समेत पूरे देश के हिन्दी फिल्म संगीत प्रेमियों पर कोई रोक नहीं है ।

    ह्निदी फिल्मों गीतों के बोलों पर आधारित सवालों के जवाब सिर्फ सिर्फ टिप्पणी के तौर पर २७ मई दोपहर १ बजे तक दिए जा सकते हैं ।जो टिप्पणियाँ स्पर्धा के जवाबों से अलग होंगी उन पर यह बन्दिश लागू न होगी तथा स्पर्धा में भाग लेने वाले उत्तरों से अलग टिप्पणी देने के हक से मरहूम न होंगे।

प्रश्न

  1.  तन – तन कर तीर चला कर नसों में पीर ऊठाने वाले कौन हैं ?

  2. चमेली कहाँ से आई थी ?

  3. ‘ मेरे राम !’ तुम्हारी शरण में आकर मुझे कैसा सुख मिला है ?

  4. जिन्दगी कब सफल हो जाएगी ?

    5.  आकाश कब जमीन हो जाता है ?

 

24 टिप्पणियां

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24 responses to “विविध भारती के श्रोताओं के लिए एक बुझौव्वल

  1. अभी पहली नज़र के जवाब ले लीजिए…बाकी घर से करूंगा।
    1.
    2.
    3. सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को, मिल जाए तरुवर की छाया..
    4.
    5. जब तारें जमीं पर चलते है, आकाश जमी हो जाता है।

    बाकी जवाब उधार रहे, इनाम किधर है?

  2. अफलातून जी, अच्‍छा किया जो आपने मुझे प्रतियोगिता से बेदखल कर दिया, अब मैं तटस्‍थ होकर मजे ले पाऊंगा । आपके सवाल पढ़ते ही मुस्‍कुरा दिया । दिल में गुदगुदी हुई और लगा कि एक पीढ़ी तक तो ठीक है पर नई पीढ़ी के लिए ये टफ सवाल हैं । इसे गानों तक ही रखिये और चाहें तो फिल्‍मों तक ले जाईये । सवाल बनाने हो तो हममें से कई ऐसे हैं जो मदद करेंगे । खूब मुबारकबाद

  3. 3. ‘ मेरे राम !’ तुम्हारी शरण में आकर मुझे कैसा सुख मिला है ?

    vaisa hi sukh, jaisa, suraj ki garmi se jalte huye tan ko milta hai jab wo taruwar ki chhaya me aata hai.

  4. 5. आकाश कब जमीन हो जाता है ?

    jab taare jamin par chalte hain, tab, aakaash jamin ho jaata hai.
    usake aage yeh hota hai ki –
    us raat nahi fir ghar jaata, woh chaand yahin so jaata hai.

    :)

  5. बचपन से विविध भारती सुनते आये हैं मगर अब तो एफ एम ही चलता है शहरों में।
    आपका पहला सवाल तो ध्यान नहीं आ रहा

    बाकी चार का जवाब है
    २. बीकानेर
    ३.जैसे सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को मिल जाये तरुवर की छाया
    ४. तू जो मेरे सुर में सुर मिला ले संग गा ले
    ५. जब तारे जमीं पर चलते हैं

  6. प्रश्न क्रमांक २. का उत्तर है ‘बीकीनेर’
    ४. का ‘तू जो मेरे सुर मे, सुर मिला दे, संग गा दे’

  7. 5. आकाश कब जमीन हो जाता है ?

    Isska jawab to turant de sakta hoon, “Jab taare zamin per hote hein, aakash jamin ho jaata hei” (Gharonda mein Runa Laila ka geet)

    ‘ मेरे राम !’ तुम्हारी शरण में आकर मुझे कैसा सुख मिला है ?

    Ye shayad “Jaise Suraj ki garmi se jalte hue tan ko mil jaye taruvar ki chhaya, vaisa hi sukh mere man ko mila hae mein jab se sharan teri aaya mere raam” geet, yaad nahi sharma bandhu the ya ram bandhu.

  8. और ये पूछना तो भूल ही गया :) क्या पॉडभारती ने आपको पुराने दिनों की याद दिला दी?

  9. v9y

    १. दो नैना मतवारे तिहारे
    २. बीकानेर से
    ३. जैसे सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को मिल जाये तरुवर की छाया
    ४. तू जो मेरे सुर में सुर मिला ले, संग गा ले
    ५. जब तारे ज़मीं पर चलते हैं

  10. विविध भारती तो खैर अबनहीं सुनता पर आपके ४ प्रश्नों के जवाब तो मजे में दे सकता हूँ ;)

    2 चमेली बीकानेर से आई थी :) गीत मेरा नाम है चमेली

    3 सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को मिल जाए तरुवर की छाया, ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला ।।शरण तेरी आया

    4 तू जो मेरे सुर में सुर मिलाए संग गाए तो जिंदगी हो जाए सफल

    5 जब तारे जमीं पर चलते हैं आकाश जमीं हो जाता है

  11. और हाँ पहला सवाल जरा मुश्किल था guess कर रहा हूँ not sure
    १ लाल छड़ी मैदान खड़ी, क्या खूब लड़ी….
    तन तन कर जालिम ने अपना तीर निशाने पर मारा
    है शुक्र कि अब तक जिंदा हूँ
    मैं दिल का घायल बेचारा….

  12. १. शम्मी कपूर – लाल छड़ी मैदान खड़ी
    २. चमेली बीकानेर से आयी थी – मेरा नाम है चमेली, मैं हूँ मालन अलबेली
    ३. शर्मा बन्धु – जैसे सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को मिल जाए तरुवर की छाया
    ४. …
    ५. …

  13. RC Mishra

    प्रश्न क्रमांक २. का उत्तर है ‘बीकीनेर’
    ४. का ‘तू जो मेरे सुर मे, सुर मिला दे, संग गा दे’

  14. dhurvirodhi

    अरे अफलातून जी; बड़ी मजेदार प्रतियोगिता है. शुक्र है आपका कि हमें इस बन्दिश से बाहर रखा है. चलिये लीजिये अपने जबाब,

    1. तन – तन कर तीर चला कर नसों में पीर ऊठाने वाले कौन हैं ?
    तन तन के चलायें तीर, नस नस में उठायें पीर,
    मदभरे नशीले निठुर बढ़े, दो नयना मतवारे तिहारे,
    हम पर जुलुम करे.
    माय सिस्टर संगीत पंकज मल्लिक, गायक – कुंदन लाल सहगल

    1. चमेली कहाँ से आई थी ?
    अपकी मालिनिया चमेली तो बीकानेर से आयी थी, (इसके अलावा बासुचटर्जी की चमेली मेरठ में रहती थी.)
    राजा और रंक, संगीत- लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल गायक- लता मंगेशकर

    3. ‘ मेरे राम !’ तुम्हारी शरण में आकर मुझे कैसा सुख मिला है ?
    सूरज की गरमी से तपते हुये तन को मिल जाये तरुवर की छाया.
    वैसे आजकल तो राम की शरण से अधिक ठंडी एसी की शरण है.
    गैर फिल्मी भजन इस को शर्मा बन्धु – पंडित गोपाल शर्मा, सुखदेव शर्मा, कौशलेन्द्र शर्मा एवं राघवेन्द्र शर्मा ने गाया था.

    4. जिन्दगी कब सफल हो जाएगी ?
    तु जो मेरे सुर में, सुर मिलाले, संग गाले, तो जिंदगी हो जाये सफल
    चितचोर – गीत- संगीत रवीन्द्र जैन गायक येसुदास – हेमलता

    5. आकाश कब जमीन हो जाता है ?
    जब तारे जमीं पर चलते है, आकाश ज़मीं हो जाता है, उस रात को चांद नहीं जाता, वो चांद यहीं सो जाता है
    पल भर के लिये इन आखों में अपना बेगाना ढूढते है, आबोदाना ढूढते है, इक आशियाना ढूढते हैं, दो दिवाने
    घरोंदा, गीत गुलजार, संगीत जयदेव. गायक भूपेन्द्र – रूना लैला

    कुछ मुद्राओं की भी व्यवस्था है क्या?

  15. dhurvirodhi

    यूनुस जी, हम भी नई नकोर पीढ़ी के हैं, पर संगीत तो पीढ़ी दर पीढ़ी नया ही रहता है ना!,

    और संगीत को जात धरम भी नहीं बांट सकता.
    फिल्मी दुनियां का सबसे मकबूल भजन “ओ दुनियां के रखवाले” और “मन तड़पत हरि दरशन को आज” को रचने वाले सभी रसखान थे. संगीत नौशाद, गायक रफी और गीतकार शकील बदायूंनी.

    काश सारी दुनियां का धरम संगीत ही होता.

  16. धुरविरोधी जी, नई पीढ़ी से मेरा मतलब उस पीढ़ी से है जिसके आराध्‍य हिमेश रेशमिया हैं, उन्‍हें नौशाद और उनके समकालीनों की पीढ़ी का संगीत ‘बोर’ लगता है, ये मुझसे कई बच्‍चों ने कहा है, वैसे तो मैं भी नई पीढ़ी का ही हूं, चौंतीस बरस की उम्र पुरानी पीढ़ी वाली तो नहीं है ना । रही बात संगीत के धर्म होने की । तो भईया अपना तो धर्म ही संगीत है । वो भी अच्‍छा संगीत, चाहे नया हो या पुराना । हम उन लोगों में से नहीं जो आज के संगीत को गाली देकर खुद को विद्वान साबित करें । बहरहाल आपकी ये बात सही है कि हम सबका धर्म संगीत होता तो कितना अच्‍छा होता

  17. daskabir

    यूनुस भाई, आप एकदम सही कह रहे हैं.
    पहले घटिया गाने भी होते थे और आज भी अच्छे गीत होते हैं.
    संगीत के धरम की बात इसलिये कि आज सुबह ब्लाग्स पर कुछ पढ़ लिया था, अफलातून साहब के सवालों ने दिल गुदगुदाया मुझे भी सो बेआख्ता मुंह से आह निकल गयी कि संगीत ही धरम होता तो भला था.
    चलिये हम और आप अब एक ही मजहब के ही हैं.

  18. १. ओ छिपने वाले सामने आ..
    २. धीरे से जाना बगियन में..
    ३. कब लोगो खबर मोरे राम..
    ४. सफल होगी रे तेरी आराधना..
    ५. जब दिल से दिल टकराता है..

  19. पहले गाने का उत्तर है दौ नैना मतवारे यह गाना स्व. कुन्दन लाल सहगल ने गाया था
    दौ नैना मतवारे हम पर जुलम करें
    ……
    तन तन के चलायें तीर
    नस नस में उठायें पीर
    मद भरे रसीले निठुर बड़े

    क्या मैं सही हूँ?

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