[ राल्फ वाल्डो एमर्सन ( १८०३ – १८८२ ) द्वारा अंग्रेजीमें लिखी एक प्रसिद्ध कविता ( फ़ेबल ) का अल्लामा इक़बाल द्वारा किया गया यह तर्जुमा है । मुझे उम्मीद है कि हिन्दी जानने वाले बच्चे इसे सीखेंगे और याद कर लेंगे । ]
कोई पहाड़ यह कहता था एक गिलहरी से
तुझे हो शर्म तो पानी में जाके डूब मरे
ज़रा-सी चीज़ है , इसपर गुरूर* , क्या कहना
यह अक़्ल और यह समझ , यह शुऊर* , क्या कहना
ख़ुदा की शान है नाचीज़ चीज़ बन बैठी
जा बेशऊर हों , यूँ बातमीज़ बन बैठी
तेरी बिसात* है या मेरी शान के आगे
ज़मीं है पस्त मेरी आन-बान के आगे
जो बात मुझमें है , तुझको वह है नसीब कहाँ
भला पहाड़ कहाँ , जानवर ग़रीब कहाँ
कहा यह सुनके गिलहरी ने , मुँह सँभाल ज़रा
यह कच्ची बातें हैं , दिल से इन्हें निकाल ज़रा
जो मैं बड़ी नहीं तेरी तरह तो क्या परवाह
नहीं है तू भी तो आख़िर मेरी तरह छोटा
हर एक चीज़ से पैदा ख़ुदा की कुदरत है
कोई बड़ा , कोई छोटा यह उसकी हिकमत* है
बड़ा जहान में तुझको बना दिया उसने
मुझे दरख़्त पे चढ़ना सिखा दिया उसने
क़दम उठाने की ताकत नहीं ज़रा तुझमें
निरी बड़ाई है , ख़ूबी है और क्या तुझमें
जो तू बड़ा है तो मुझ-सा हुनर दिखा मुझको
यह छालिया ही ज़रा तोड़कर दिखा मुझको
नहीं है चीज़ निकम्मी कोई ज़माने में
कोई बुरा नहीं कुदरत के कारख़ाने में
– अल्लामा इक़बाल
[ गुरूर = घमंड , शुऊर = समझ – बूझ ( तमीज़ ) , बिसात = हैसियत , हिकमत = तत्वदर्शिता , मसलिहत ]