” इस्लाम में धर्मान्तरण कैसे करें ? धर्मान्तरण करके मुसलिम बनने हेतु चैट द्वारा मदद लें”
एक शानदार खबर के शीर्षक के ठीक नीचे उपर्युक्त इश्तेहार दिया हुआ है । विज्ञापन एक संस्था का है और यह विज्ञापन गूगल द्वारा प्रसारित है । गूगल ने धर्म , धर्म कबूलना , हिन्दू , मुस्लिम, ईसाई जैसे शब्द पढ़कर विज्ञापन लगा दिया होगा। धर्मान्तरण की बाबत स्वामी विवेकानन्द के विचार हमें याद रखने चाहिए । धर्म के तथाकथित अलम्बरदारों के गले न उतरने वाली बात कह गये हैं स्वामी विवेकानन्द ।
खबर से जुड़े़ युवा जोड़े को इस एक-लाईना इश्तेहार से जरूर कोफ़्त हुई होगी , यह और कोई समझे न समझे मैं समझ सकता हूँ । मेरे साथ भी गूगल ने ऐसी ही बेहूदगी की थी । मैंने कोका कोला द्वारा भू्मिगत जल – दोहन के खिलाफ़ बनारस में चल रहे आन्दोलन की रपट लिखी थी जो कई वेब साईट्स पर छपी थी । इस रिपोर्ट के साथ कोका कोला से जुड़े विज्ञापन गूगल ने नत्थी कर दिए थे । कितनी बड़ी नाइंसाफ़ी ? जब गूगल से पत्राचार किया तब उनकी नीति मुझे बता दी गयी । ’ चाहे तो अपनी मेल तथा अपनी साईट्स पर कोका कोला के विज्ञापन रोक सकते हैं । ’ लेकिन दूसरों की साइट्स द्वारा यह करवाना टेढ़ी खीर थी ।
बहरहाल , उपर्युक्त इश्तेहार कल छपी किस खबर से जुड़ा है ? यह जुड़ा है मुम्बई के वरसोवा में रहने वाले अदिति शेड्डे तथा उनके पति आलिफ़ सुर्ती के तीन माह के बेटे से । अदिति और आलिफ़ को वृहन्मुम्बई नगर निगम से अपने बेटे का जन्म प्रमाण पत्र पाने में कितनी हुज्जत करनी पड़ी इसकी खबर है । यह दम्पति चाहते थे कि बेटे के जन्म प्रमाण पत्र में ’ धर्म ’ का कॉलम खाली हो । बच्चे के बारे में यह फैसला उन दोनों ने झटके-पटके में नहीं लिया था। अदिति बताती है कि गर्भ धारण के कुछ माह बाद ही उन्होंने यह फैसला कर लिया था कि बच्चे पर किसी धर्म की पहचान हम नहीं थोपेंगे।
” हम किसी धर्म के खिलाफ़ नहीं हैं परन्तु अपने शिशु का धर्म तय करने वाले हम कौन होते हैं ? हम बालक को विभिन्न धर्मों के मूल्यों के बीच रखेंगे । जब वह बड़ा हो जाएगा तब वह कोई भी पंथ चुनने अथवा किसी भी पंथ को न चुनने के लिए आज़ाद होगा ।”
इस दम्पति का यह निर्णय विनोबा के विचार से मेल खाता है । उनका मानना था कि हाई स्कूल परीक्षा देने की उम्र तक पहुंचने के पहले बच्चों का कोई धर्म नहीं होना चाहिए । इस्लाम में भी धर्म आचरण सम्बन्धी नियम अबोध बच्चों पर लागू नहीं होते । इस मूल भावना को स्वीकार कर लेने पर राजस्थान के कई समूहों में जैसे गोद में बच्चों को लेकर बाल-विवाह बिना प्रशासन की रोक टोक के हजारों की संख्या में सम्पन्न किया जाते है। वैसा मुसलमान बच्चों के लिए भी हराम माना जाना चाहिए । दहेज उत्पीड़न रोकने के लिए बने कानून जैसे सभी धर्मावलम्बियों पर लागू होते हैं वैसे ही बाल-विवाह निरोधक कानून भी लागू होना चाहिए ।
परन्तु बच्चों और महिलाओं पर अमानवीय परम्पराओं को थोपने का ठीका सभी धर्मों के ठेकेदार लिए बैठे होते हैं । वे न बाल विवाह के खिलाफ़ कुछ करते हैं और सती प्रथा को भी धर्म और परम्परा के अनुसार बताते हैं । सती विरोधी कानून में सती का मन्दिर बनाना और उसकी पूजा करना भी जुर्म बताया गया है । बाल विवाह जैसी कुरीतियों को रोकने के लिए जब कानून लाया जा रहा था (शारदा एक्ट आदि) तब रा्ष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के गुरु गोलवलकर ने उसका विरोध किया था । सभी सामाजिक सुधार समाज की भीतर से आते हैं , ठेकेदार बनने वालों को उनसे खतरा होता है।
इसीलिए हम पाते हैं कि हमारे अन्दर का साम्प्रदायिक मानस दूसरे समुदाय के महिलाओं और बच्चों के प्रति अति संवेदनशील और मानवीय हो उठता है । वैसी संवेदनशीलता अपने समूह के महिलाओं और बच्चों के प्रति होने वाले परम्परागत अन्याय के प्रति इन तत्वों को कत्तई नहीं दिखती । बल्कि यही लोग उन सड़ी गली परम्पराओं के हक़ में खड़े हो जाते हैं । कई सामाजिक सर्वेक्षणों के अनुसार हिन्दुओं में बहुपत्नी का प्रमाण अब मुसलमानों से बढ़ गया है। मुस्लिम पर्सनल लॉ की छूट के बावजूद बहु पत्नी प्रथा समाप्त सी है । मुस्लिम समाज भी एक से अधिक पत्नी वाले पुरुषों को हेय दृष्टि से देखता है । क्या यह कल्पना की जा सकते हैं कि आर एस एस मुस्लिम महिलाओं और बच्चों को संगठित करने और सामाजिक परिवर्तन की दिशा में कुछ कर सकता है ? सवर्ण – अवर्ण विवाह करने वाले जोड़ों को सम्मानित करने की एक स्वस्थ परम्परा महाराष्ट्र जैसे प्रान्तों में समतावादी संगठनों द्वारा चलाई गई है । सामाजिक यथास्थिति बरकरार रखने वाली शक्तियां कभी भी जातिविहीन , स्त्री-पुरुष समता की दिशा में सक्रिय नहीं होतीं । कारण साफ़ है : उनके कल्पना का ’हिन्दू राष्ट्र’ जातिविहीन नहीं है । आज सामाजिक रूप से जो तबके ताकतवर हालत में हैं वे भी नहीं चाहेंगे कि उनकी इस शक्ति सम्पन्न हालत में कोई तब्दीली आवे इसलिए वे भी ऐसे लक्ष्य के प्रति अनुकूल होते हैं । कुछ दिनों पहले मुझसे एक पाठक ने पूछा था कि जनेऊ और फिरकापरस्ती का क्या सम्बन्ध है ?
युनिसेफ की ’विश्व के बच्चों की स्थिति : २००९’ के अनुसार भारत में २०-२४ वर्ष की ४७ फीसदी महिलायें बाल-विवाह की उम्र मे (१८ से नीचे) विवाहित हुई थीं । इनमें ५६ फीसदी ग्रामीण इलाकों की थी । दुनिया भर के बाल विवाहों का ४० फीसदी भारत में होता है । (सन्दर्भ तालिका )
जन्म प्रमाणपत्र हासिल करना इतना आसान न था । अस्पताल प्रशासन को जब पता चला कि यह दोनों धर्म का कॉलम खाली छोड़ने वाले हैं तो उनके कान खड़े हो गये । हर अस्पताल को जन्म के १५ दिन के अन्दर वृहन्मुम्बई महानगर निगम को सूचना देनी पड़ती है जिसके आधार पर महानगर निगम जन्म प्रमापत्र जारी करता है । ” आपको महानगर निगम के अधिकारी से बतियाना पड़ेगा ।” अस्पताल के एक कर्मचारी ने उन्हें बताया ।
” चूंकि अदिति मराठी भाषी है इसलिए मैंने कॉर्पोरेशन वालों को फरियाने के लिए कहा ।” एक फिल्म निर्माण और वितरण कम्पनी के क्रिएटिव डाईरेक्टर आलिफ़ ने कहा । अदिति महानगर निगम के अंधेरी स्थित दफ़्तर में पहुंची ।
” क्या तुम्हें अपनी हिन्दू पहचान पर शर्म है ? तुम क्यों नहीं चाहती कि तुम्हारा बच्चा हिन्दू जाना जाए ? ” एक अफ़सर ने अदिति से उर्रठई से पूछा । अदिति ने पलटकर अफ़सर से कहा ,” मुझे अपनी हिन्दू पृष्टभूमि पर गर्व है परन्तु मैं हिन्दू धर्म का पालन नहीं करती । क्या धर्म निरपेक्ष , लोकतांत्रिक देश में अभिभावक अपने बच्चे का कोई धर्म न बताने का निर्णय नहीं ले सकते ?”
अफ़सर के गले यह बात नहीं उतरनी थी । उसने एक तकनीकी समस्या ( गूगल की श्रेणी की ) बताई । जन्म प्रमाणपत्र जिन मशीनों की मदद से निकलता है वह कोई भी कॉलम खाली रहने पर आवेदन खारिज कर देती है ।” अदिति के टस से मस न होने पर उसे एक ऊपर के अफ़सर के पास ले जाया गया। ” इस अफ़सर ने मुझे धैर्य पूर्वक सुना और कहा कि वह मेरी भावनाओं की कद्र करता है । उसने वही तकनीकी समस्या दोहरा दी लेकिन यह कहा कि मेरी पूरी नौकरी के दरमियान ऐसा निवेदन कभी नहीं किया गया । इस पर मैंने कहा कि हमेशा कोई न कोई तो प्रथम बनता ही है । ”
बस, दम्पति निराश होने ही वाले थे । उक्त कॉलम को भरने के लिए उनके पास चार विकल्प थे – हिन्दू , मुस्लिम, ईसाई तथा अन्य । अदिति का कहना है कि ’अन्य’ में भी पहचान -विशेष बताने की बात थी- अन्य कौन सा? वह अफ़सर से और बहसी लेकिन आखिरकार बिना ’अन्य’ का विवरण दिए ’अन्य’ भरने पर मान गयी । ” यह सिर्फ़ प्रमाण पत्र हासिल करने के लिए किया है,हमें पता है कि हमारे बच्चे का कोई धर्म नहीं है । ”
इस फैसले तक पहुंचने की वजह वे दोनों अपनी उदार परवरिश को मानते हैं । अदिति कुवैत में बड़ी हुई थी जहाँ उसके कई सहपाठी मुस्लिम थे । उसे कुरान की कुछ आयतें भी कंठस्थ हो गई थीं ।
आलिफ़ प्रसिद्ध लेखक कार्टूनिस्ट (डब्बूजी के जनक) आबिद सुर्ती के पुत्र हैं । ओशो रजनीश , अटल बिहारी वाजपेयी और अमिताभ बच्चन को आबिद भाई अपना प्रशंसक बताते हैं (डब्बूजी के कारण)। ७५ वर्षीय आबिद कहते हैं , ” अपने दोनों बच्चों पर कोई धार्मिक पहचान थोपने का विचार मैंने कभी नहीं किया । मैं बिना धर्म के जिक्र के उनका जन्म प्रमाणपत्र हासिल करने में विफल रहा। मैं खुश हूँ कि मेरे बेटे और बहु ने इसमें कामयाबी हासिल की है । ”
सम्बन्धित खबरें , पोस्ट तथा लेख जिनके आधार पर लिखा गया है :
१. आलिफ़-अदिति के बेटे के धर्म सम्बन्धी खबर: टाईम्स ऑफ़ इंडिया
२. स्त्री-पुरुष समता और निजी कानून : डॉ. स्वाति , (२) , (३)
३. भारत में बाल-विवाह पर तथ्य : अंग्रेजी विकीपीडिया
४. ईसाई और मुसलमान क्यों बनते हैं – स्वामी विवेकानन्द
५. राष्ट्र की रीढ़ : स्वामी विवेकानन्द
६. सती-प्रथा पर भारतीयतावादियों से कुछ सवाल : किशन पटनायक
७. रामायण की सती अयोध्या में नहीं लंका में है : किशन पटनायक
८. विकृतियों से लड़कर नई भारतीयता का सृजन करेंगे : किशन पटनायक