Tag Archives: बाल कविता

वाह ! गिलहरी क्या कहने

वाह! गिलहरी क्या कहने

वाह ! गिलहरी क्या कहने

वाह ! गिलहरी क्या कहने !
धारीदार कोट पहने ।
पूंछ बड़ी-सी झबरैली,
काली – पीली – मटमैली ।
डाली – डाली फिरती है ,
नहीं फिसल कर गिरती है ॥

[ चिल्ड्रेन्स बुक ट्रस्ट की ‘नन्हे-मुन्नों के गीत’ से साभार ]

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काले बादल : केरल की मीनाक्षी पय्याडा की कविता

[ मीनाक्षी पय्याडा के माता – पिता दोनों शुद्ध मलयाली हैं , यानी केरलवासी । उसकी माँ , केरल के कन्नूर जिले में केन्द्रीय विद्यालय में शिक्षिका है इसलिए मीनाक्षी को अपने स्कूल ( केन्द्रीय विद्यालय) में हिन्दी पढ़ने का मौका मिला। मीनाक्षी को अब तक किसी हिन्दी भाषी राज्य की यात्रा का मौका नहीं मिला है । हमारे दल , समाजवादी जनपरिषद के हाल ही में धनबाद में हुए राष्ट्रीय सम्मेलन में मीनाक्षी के पिता हिन्दी में लिखी उसकी यह प्यारी सी कविता साथ लाये थे ।  – अफ़लातून ]

kale badal

काले बादल

काले बादल

आओ बादल , काले बादल

बारिश हो कर आओ बादल

सरिता और सागर को भरो पानी से ।

मैं संकल्प करती हूँ

तुम्हारे साथ खेलने का ,

पर तुम आए तो नहीं ?

आओ बादल , तुम आसमान में घूमते फिरते

पर मेरे पास क्यों नहीं आते ?

तुम यहाँ आ कर देखो

कि ये बूँदें कितनी सुन्दर हैं ।

क्या मजा है आसमान में

तुम भी मन में करो विचार ।

आओ बादल , काले बादल ।

– मीनाक्षी पय्याडा ,

उम्र – १० वर्ष , कक्षा ५,

केन्द्रीय विद्यालय ,

’ चन्द्रकान्तम’ ,

पोस्ट- चोव्वा ,

जि. कन्नूर – ६

केरलम

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जुगनू

सुनाऊं तुम्हें बात एक रात की,

कि वो रात अंधेरी थी बरसात की,

चमकने से जुगनू के था इक समां,

हवा पर उड़ें जैसे चिंगारियां।

पड़ी एक बच्चे की उन पर नजर,

पकड़ ही लिया एक को दौड़कर।

चमकदार कीड़ा जो भाया उसे,

तो टोपी में झटपट छुपाया उसे।

वो झमझम चमकता इधर से उधर,

फिरा कोई रस्ता न पाया मगर,

तो ग़मगीन क़ैदी ने की इल्तजा,

ऐ छोटे शिकारी! मुझे कर रिहा।

ख़ुदा के लिए छोड़ दे! छोड़ दे,

मेरी क़ैद के जाल को तोड़ दे।

बच्चा- करूंगा न आजाद उस व़क्त तक, कि देखूँ न दिन में तेरी मैं चमक।

जुगनू- चमक मेरी दिन में न पाओगे तुम, उजाले में हो जाएगी वो गुम।

बच्चा- अरे छोटे कीड़े न दम दे मुझे,

कि है वाक़फियत अभी कम मुझे,

उजाले में दिन के खुलेगा ये हाल,
कि इतने से कीड़े में क्या है कमाल,

धुआं है, न शुआं, न गरमी, न आंच,

चमकने की तेरी करूंगा मैं जांच।

जुगनू- यह कुदरत की कारस्तानी है जनाब,

कि जर्रे को चमकाए ज्यूं आफ़ताब।

मुझे दी है उस वास्ते ये चमक कि तुम देखकर मुझको जाओ ठिठक।
न अल्हड़पने से बनो पायमाल,
समझ कर चलो,आदमी की सी चाल।

(स्कूल में सीखी थी।कोई रचनाकार का नाम बता दे,शुक्रगुजार रहूंगा।एक पाठक प्रियंका श्रीवास्तव ने बताया है कि यह बख़्त बहादुर निशात की रचना है।किसी ने हमें बताया था कि यह अल्लामा इकबाल ने लिखी है तो 2008 में अपनी मूल पोस्ट में उनका नाम लिखा था।)

मायने- इल्तजा-प्रार्थना, वाक़फियत-जानकारी, शुआ- किरणों, जर्रा-क़तरा, आफ़ताब-सूरज

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