Tag Archives: बच्चों के लिए

अल्लामा इकबाल : बच्चों के लिए (६) : एक मकड़ा और मक्खी

इक दिन किसी मक्खी से यह कहने लगा मकड़ा

इस राह से होता है गुजर रोज तुम्हारा

लेकिन मेरी कुटिया की न जगी कभी किस्मत

भूले से कभी तुमने यहां पाँव न रखा

गैरों से न मिली तो कोई बात नहीं है

अपनों से मगर चाहिए यूं खिंच  के न रहना

आओ जो मेरे घर में , तो इज्जत है यह मेरी

वह सामने सीढ़ी है , जो मंजूर हो आना

मक्खी ने सुनी बात मकड़े की तो बोली

हज़रत किसी नादां को दीजिएगा ये धोखा

इस जाल में मक्खी कभी आने की नहीं है

जो आपकी सीढ़ी पे चढ़ा , फिर नहीं उतरा

मकड़े ने कहा वाह ! फ़रेबी मुझे समझे

तुम-सा कोई नादान ज़माने में न होगा

मंजूर तुम्हारी मुझे खातिर थी वगरना

कुछ फायदा अपना तो मेरा इसमें नहीं था

उड़ती हुई आई हो खुदा जाने कहाँ से

ठहरो जो मेरे घर में तो है इसमें बुरा क्या ?

इस घर में कई तुमको दिखाने की हैं चीजें,

बाहर से नजर आती है छोटी-सी यह कुटिया

लटके हुए दरवाजों पे बारीक हैं परदे

दीवारों को आईनों से है मैंने सजाया

मेहमानों के आराम को हाज़िर हैं बिछौने

हर शख़्स को सामाँ यह मयस्सर नहीं होता

मक्खी ने कहा , खैर यह सब ठीक है लेकिन

मैं आपके घर आऊँ , यह उम्मीद न रखना

इन नर्म बिछौनों से ख़ुदा मुझको बचाये

सो जाए कोई इनपे तो फिर उठ नहीं सकता

मकड़े ने कहा दिल में , सुनी बात जो उसकी

फाँसूँ इसे किस तरह , यह कमबख़्त है दाना

सौ काम खुशामद से निकलते हैं जहाँ में

देखो जिसे दुनिया में , खुशामद का है बन्दा

यह सोच के मक्खी से कहा उसने बड़ी बी !

अल्लाह ने बख़्शा है बड़ा आपको रुतबा

होती है उसे आपकी सूरत से मुहब्बत

हो जिसने कभी एक नज़र आपको देखा

आँखें हैं कि हीरे की चमकती हुई कनियाँ

सर आपका अल्लाह ने कलग़ी से सजाया

ये हुस्न,ये पोशाक,ये खूबी , ये सफ़ाई

फिर इस पे कयामत है यह उड़ते हुए गाना

अल्लामा इक़बालफिर इसपे क़यामत है यह उड़ते हुए गाना

मक्खी ने सुनी जब ये खुशामद , तो पसीजी

बोली कि नहीं आपसे मुझको कोई खटका

इनकार की आदत को समझती हूँ बुरा मैं

सच यह है कि दिल तोड़ना अच्छा नहीं होता

यह बात कही और उड़ी अपनी जगह से

पास आई तो मकड़े ने उछलकर उसे पकड़ा

भूका था कई रोज़ से , अब हाथ जो आई

आराम से घर बैठ के , मक्खी को उड़ाया

– अल्लामा इक़बाल

[ वगरना = नहीं तो , सामाँ = सामान ,  दाना = समझदार , कनियाँ = टुकड़े ]

Advertisement

6 टिप्पणियां

Filed under अल्लामा इकबाल, hindi poems, nursery rhymes , kids' poetry, poem

अल्लामा इकबाल : बच्चों के लिए (५) : शहद की मक्खी

इस फूल पे बैठी , कभी उस फूल पे बैठी

बतलाओ तो, क्या ढूँढ़ती है शहद की मक्खी ?

क्यों आती है , क्या काम है गुलजार में उसका ?

ये बात जो समझाओ तो समझें तुम्हे दाना

चहकारते फिरते हैं जो गुलशन में परिन्दे

क्या शहद की मक्खी की मुलाकात है उनसे ?

आशिक है ये कुमरी की , कि बुलबुल की है शैदा ?

या खींच के लाता है इसे सैर का चसका ?

दिल बाग़ की कलियों से तो अटका नहीं इसका ?

भाता है इसे उनके चटखने का तमाशा ?

सबज़े से है कुछ काम कि मतलब है सबा से ?

या प्यार है गुलशन के परिन्दों की सदा से ?

भाता है इसे फूल पे बुलबुल का चहकना ?

या सरो पे बैठे हुए कुमरी का ये गाना ?

पैग़ाम कोई लाती है बुलबुल ज़बानी ?

या कहती है ये फूल के कानों में कहानी ?

क्यों बाग में आती है , ये बतलाओ तो जानें ?

क्या कहने को आती है , ये समझाओ तो जानें ?

बेवजह तो आख़िर कोई आना नहीं इसका

होशियार है मक्खी इसे गाफ़िल न समझना

बेसूद नहीं , बाग़ में इस शौक से उड़ना

कुछ खेल में ये वक़्त गँवाती नहीं अपना

करती नहीं कुछ काम अगर अक़्ल तुम्हारी

हम तुमको बताते हैं , सुनो बात हमारी

कहते हैं जिसे शहद , वह एक तरह का रस है

आवारा इसी चीज़ की ख़ातिर ये मगस है

रखा है ख़ुदा ने उसे फूलों में छुपाकर

मक्खी उसे ले जाती है छत्ते में उड़ाकर

हर फूल से ये चूसती फिरती है उसी को

ये काम  बड़ा है , इसे बेसूद न जानो

मक्खी ये नहीं है, कोई नेमत है ख़ुदा की

मिलता न हमें शहद , ये मक्खी जो न होती

इस शहद को फूलों से उड़ाती है ये मक्खी

इनसान की ये चीज़ ग़िज़ा भी है , दवा भी

कुव्वत है अगर इसमें तो है इसमें शिफ़ा भी

रखते हो अगर होश तो इस बात को समझो

तुम शहद की मक्खी की तरह इल्म को ढूँढ़ो

ये इल्म भी एक शहद है और शहद भी ऐसा

दुनिया में नहीं शहद कोई इससे मुसफ़्फ़ा

हर शहद से जो शहद है मीठा , वो यही है

करता है जो इनसान को दाना , वो यही है

ये अक़्ल के आईने को देता है सफ़ाई

ये शहद है इनसाँ की , वो मक्खी की कमाई

सच समझो तो इनसान की अजमता है इसी से

इस ख़ाक के पुतले को सँवारा है इसी ने

फूलों की तरह अपनी किताबों को समझना

चसका हो अगर तुमको भी कुछ इल्म के रस का

– अल्लामा इकबाल

[ गुलज़ार = गुलशन ; फुलवारी , दाना = अक़्लमंद ;होशियार , कुमरी= एक चिड़िया, शैदा = आशिक , सबा = सुबह की हवा ,सदा= अवाज़ , सरो = एक सीधा छतनार पेड़ ; वनझाऊ , बेसूद = बेफ़ायदा ; बेमक़सद , मगस = मक्खी;शहद की मक्खी ,शिफ़ा= तन्दुरस्ती ; रोग से मुक्ति, मुसफ़्फ़ा = साफ़ – सुथरा ; स्वच्छ , अजमता = बड़ाई ;महानता ]

6 टिप्पणियां

Filed under allama iqbal, अल्लामा इकबाल, hindi, hindi poems, nursery rhymes , kids' poetry

अल्लामा इकबाल : बच्चों के लिए (४) : एक पहाड़ और गिलहरी

[ राल्फ वाल्डो एमर्सन ( १८०३ – १८८२ ) द्वारा अंग्रेजीमें लिखी एक प्रसिद्ध कविता ( फ़ेबल ) का अल्लामा इक़बाल द्वारा किया गया यह तर्जुमा है । मुझे उम्मीद है कि हिन्दी जानने वाले बच्चे इसे सीखेंगे और याद कर लेंगे । ]

कोई पहाड़ यह कहता था एक गिलहरी से

तुझे हो शर्म तो पानी में जाके डूब मरे


ज़रा-सी चीज़ है , इसपर गुरूर* , क्या कहना

यह अक़्ल और यह समझ , यह शुऊर* , क्या कहना


ख़ुदा की शान है नाचीज़ चीज़ बन बैठी

जा बेशऊर हों , यूँ बातमीज़ बन बैठी


तेरी बिसात* है या मेरी शान के आगे

ज़मीं है पस्त मेरी आन-बान के आगे


जो बात मुझमें है , तुझको वह है नसीब कहाँ

भला पहाड़ कहाँ , जानवर ग़रीब कहाँ


कहा यह सुनके गिलहरी ने , मुँह सँभाल ज़रा

यह कच्ची बातें हैं , दिल से इन्हें निकाल ज़रा


जो मैं बड़ी नहीं तेरी तरह तो क्या परवाह

नहीं है तू भी तो आख़िर मेरी तरह छोटा


हर एक चीज़ से पैदा ख़ुदा की कुदरत है

कोई बड़ा , कोई छोटा यह उसकी हिकमत* है


बड़ा जहान में तुझको बना दिया उसने

मुझे दरख़्त पे चढ़ना सिखा दिया उसने


क़दम उठाने की ताकत नहीं ज़रा तुझमें

निरी बड़ाई है , ख़ूबी है और क्या तुझमें


जो तू बड़ा है तो मुझ-सा हुनर दिखा मुझको

यह छालिया ही ज़रा तोड़कर दिखा मुझको


नहीं है चीज़ निकम्मी कोई ज़माने में

कोई बुरा नहीं कुदरत के कारख़ाने में


– अल्लामा इक़बाल

[ गुरूर = घमंड , शुऊर = समझ – बूझ ( तमीज़ ) , बिसात = हैसियत , हिकमत = तत्वदर्शिता , मसलिहत ]

6 टिप्पणियां

Filed under अल्लामा इकबाल, hindi poems, nursery rhymes , kids' poetry, poem, rhyme

अल्लामा इकबाल : बच्चों के लिए (३) : हमदर्दी

टहनी पे किसी शजर* की तनहा
बुलबुल था कोई उदास बैठा
 
कहता था की रात सर पे आई
उड़ने चुगने में दिन गुज़ारा
 
पहुँचूँ किसी तरह आशियाँ* तक
हर चीज़ पे छा गया अन्धेरा
 
सुनकर बुलबुल की आहो ज़ारी*
जुगनू कोई पास ही से बोला
 
हाज़िर हूँ मदद को जानो-दिल से
कीड़ा हूँ अगरचे मैं ज़रा-सा
 
क्या गम है जो रात है अंधेरी
मैं राह में रौशनी करूंगा
 
अलाह ने दी है मुझको मशआल
चमका के मुझे दिया बनाया
 
हैं लोग वही जहां में अच्छे
आते हैं जो काम दूसरों के
 
– अल्लामा इकबाल
 
[ शजर = पेड़ , आशियाँ = घोंसला , आहो ज़ारी = रोना-चिल्लाना ]

4 टिप्पणियां

Filed under अल्लामा इकबाल, hindi, hindi poems, nursery rhymes , kids' poetry, poem