इस कविता से हर उर्दू सिखने वाले ने ऊर्दू का पाठ पढना शुरू किया है। इसे इस्माइल मेरठी ने 1858 मे लिखा था …अगर मेरे किसी भाई के पास इससे अच्छी कविता हो तो जरूर बताये। गाय से बेइंतहा प्यार हुए बगैर ऐसी कविता असंभव है। पढ़िए-
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रब का शुक्र अदा कर भाई
ज़िस ने हमारी गाय बनाई
उस मालिक को क्योंना पुकारे
जिसने पिलाए दूध की धारे
ख़ाक को उसने सब्ज़ बनाया
सब्ज़ को फिर इस गाय ने खाया
कल जो घास चरी थी वन में
दूध बनी वो गाय के थन में
सुभान अल्लाह दूध है कैसा
ताजा, गरम, सफेद और मीठा
दूध में भीगी रोटी मेरी
उसके करम ने बख्शी सेहरी
दूध, दही और मट्ठा मसका
दे ना खुदा तो किसके बस का
गाय को दी क्या अच्छी सूरत
खूबी की हैं गोया मूरत
दाना, दुनका, भूसी, चोकर
खा लेती है सब खुश होकर
खाकर तिनके और ठठेरे
दूध है देती शाम सबेरे
क्या गरीब और कैसी प्यारी
सुबह हुई जंगल को सिधारी
सब्ज़ से ये मैदान हरा है
झील में पानी साफ भरा है
पानी मौजें मार रहा है
चरवाहा पुचकार रहा है
पानी पीकर .चारा चरकर
शाम को आई अपने घर पर
दोरी में जो दिन है काटा
बच्चे को किस प्यार से चाटा
गाय हमारे हक में नेमत
दूध है देती खा के बनस्पत
बछड़े इसके बैल बनाएं
जो खेती के काम में आएं
रब की हम्द-ओ-सना कर भाई
जिसने ऐसी गाय बनाई ।
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यह नज्म आज भी उर्दू की हर पहली किताब का सबक है । गाय की तारीफ़ में ऐसी दूसरी कविता शायद ही मिले।