कविता / खबरदार ! वे आ रहे हैं / राजेन्द्र राजन

[ पिछले दिनों घुघूतीबासूती ने ईस्ट इंडिया कम्पनी को भारतीय मूल के इंग्लैण्ड के एक नागरिक द्वारा खरीदे जाने पर एक पोस्ट लिखी । उसे पढ़कर मुझे १९९२-९३ में कवि-मित्र राजेन्द्र राजन द्वारा लिखी यह कविता याद आई ।

श्यामलाल ’पागल’और विपुल द्वारा बनाये गये पोस्टर चित्रों के साथ इस कविता की चित्र प्रदर्शनी को कई राज्यों में दिखाया था ]

स्वागत करो

सजाओ वन्दनवार

वे आ रहे हैं

दुनिया के बड़े-बड़े महाजन

सेठ – साहूकार

तुम्हारी नीलामी में

बोलियाँ बोलने

वे आ रहे हैं

तुम्हारे खेतों की

तुम्हारी फसलों की

तुम्हारे बीजों की

तुम्हारे फलों की

तुम्हारे बैलों की

तुम्हारे हलों की

नीलामी में बोलियाँ बोलने

वे आ रहे हैं

स्वागत करो

पहनाओ गले में हार

उन आगन्तुकों में नहीं हैं वे

जो आए थे पुराने जमानों में

नालन्दा और तक्षशिला

ज्ञान की प्यास लिए

वे आ रहे हैं

मुनाफ़े की आस लिए

जैसे आई थी ईस्ट इंडिया कंपनी

बढ़ने लगी दिन दूनी रात चौगुनी

बनाने लगी किले

फिर जिले

और फिर सारा देश

हो गया उसका उपनिवेश

वे आ रहे हैं

ईस्ट इंडिया कंपनी के

नए बही-खाते लिए

गले में कारीगरों के कटे अंगूठों की मालाएं पहने

भोपाल की जहरीली गैस छोड़ते

वे आ रहे हैं .

खबरदार !

कोई उन्हें रोके नहीं

कोई उन्हें टोके नहीं

उनके इशारों पर नाचती है सरकार

वे हैं हमारे शाही मेहमान

महाप्रभु दयावान

उन्हें बुला रहे हैं देश के तमाम

अमीर – उमरा हाकिम – हुक्काम

उनके लिए ला रहे हैं वे

अन्त: पुर के नए साज – सामान

स्वागत करो

खड़े हो जाओ बांधकर कतार

वे आरहे हैं

विकास के महान ठेकेदार

जो बाँटते हैं उधार

मुद्राकोष के विटामिन

और विश्व बैंक की प्रोटीन

और भी कई तरह की बोतलें रंगीन

जो हैं कमजोर और बीमार

वे कर लें अपनी सेहत में सुधार

आज जिनकी है सेहत ठीक

कल उसे देंगे वे बिगाड़

ताकि चलता रहे इलाज का उनका व्यापार

वे आ रहे हैं

नई गुलामी के सूत्रधार

लेकर डॉलर के हथियार

वे खरीदेंगे पूरे संसार को

बेचेंगे जादुई प्रचार

उन्हें आते हैं कई चमत्कार

वे बदल देंगे तुम्हारा दिमाग

तुम्हारी आँखें

तुम्हारा दिल

तुम्हारी चाल

तुम्हारी भाषा

तुम्हारे संस्कार

तुम्हारी अकल होगी बस नकल

तुम्हारी कला बन जाएगी चकला

संस्कृति होगी तुम्हारी

हिप-हिप हुला-हुला

हिप-हिप हुला-हुला

वे करेंगे तुम्हारा पूरा कायाकल्प

होंगे तुम गुलाम

नहीं लोग आजादी का नाम

भूल जाओगे लड़ने का विचार

नहीं उठेगा कोई भी उजला संकल्प

जो सूत्र वे बोलेंगे एक बार

तुम उसे दोहराओगे बारम्बार

वे खायेंगे तुम टपकाओगे लार

वे फटकारेंगे

तुम करोगे उनकी जय जयकार

तुम नाचोगे जब पड़ेगी तुम पर मार

इसे तुम कहते रहो सुधार

तुम्हार महिमा अपरम्पार

उनकी माया है विकराल

हर मुल्क हर शर में हैं

उनके पिट्ठू

उनके दलाल

जो कहते हैं उन्हें

दुनिया के खेवनहार

समझाते हैं हमें

भरोसा मत रखो

अपनी मेहनत पर

अपनी बु्द्धि पर

अपनी ताकत पर

अपनी हिम्मत पर

वे आयेंगे करेंगे तुम्हारा बेड़ापार

मत थामो खुद अपनी पतवार

वे आ रहे हैं

करने तुम्हारे मुल्क का उद्धार

उन्हें मिल गये हैं भारी मददगार

तुम्हारे ही कर्णधार

जो डरने को तैयार

जो झुकने को तैयार

जो बिकने को तैयार

कहें वे जो सब करने को तैयार

उन्हें सौंप रहे हैं वे

तुम्हारे घर के सब अधिकार

वे बना देंगे

तुम्हारे ही घर में तुम्हें किराएदार

जो चाहते हैं इसे करना इनकार

आज उठें वे करें ये ललकार

सत्ताधीशों का स्वेच्छाचार नहीं है हमारा देश

न पिशाचों का बाजार नहीं है हमारा देश

गिरवी सौदा फंदा व्यापार नहीं है हमारा देश

दासानुदास बंधुआ लाचार नहीं है हमारा देश

मुक्ति का ऊँचा गान है हमारा देश

जो गूँजता है जमीन से आसमान तक

सारे बंधन तोड़

उठेगी जब भी यह ललकार

उन्हें बुलाने वाले तब कहीं नहीं होगंगे

उनके चरण चूमने वाले तब कहीं नीं होंगे

अपने अन्त:पुर से वे फेंक दिए जायेंगे

इतिहास की काल-कोठरी में

उन्हें खाएगा उनका अंधकार

हमारे ही कंधों पर यह भार

जो मिट जायेंगे मगर

करेंगे हर गुलामी का प्रतिकार

हमारे ही कंधों पर यह भार

इतिहास जिनसे करता है हिसाब

भविष्य को जो देते हैं जवाब

हमारे ही कंधों पर यह भार

जो चाहते हैं आज

कि दुनिया बने एक समाज

न पागल सत्ता की अंधी चाल

न पूंजी का व्यभिचार

हमारे ही कंधों पर यह भार

जो सुन सकते हैं वक्त की पुकार

हमारे ही कंधों पर यह भार ।

– राजेन्द्र राजन





Advertisement

6 टिप्पणियां

Filed under corporatisation, globalisation, Uncategorized

6 responses to “कविता / खबरदार ! वे आ रहे हैं / राजेन्द्र राजन

  1. अच्छी कविता है, यह युग के सत्य को प्रदर्शित कर रही है।

  2. Sadhuwaad,

    Dunkel uncle ke pratikar ka zamana yaad dila diya.
    Naye naye vyask hue the aur pehla jan andolan tha…

    Kuchh bhi to nahin badla hai…

    Peace,
    Desi Girl

  3. निस्‍सन्‍देह, बिजली के नंगे, करण्‍टदार तार हाथों में थमानेवाली कविता है यह। इसका शब्‍द-शब्‍द आज की हकीकत बयान करता है।

  4. लोगो कवनो बात से खुस हो जाला…पिटइला से त होबे करेला, बाकिर उपर के खाल में देख के हमेसा धोखा खा जाला…

  5. आज भी प्रासंगिक है यह कविता और ये सु-विचार। लेकिन आज लोगों की कलाई मे रक्त की जगह जल है अतः इस पर कोई प्रतीकार नहीं हो रहा है।

एक उत्तर दें

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  बदले )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  बदले )

Connecting to %s