अल्लामा इकबाल : बच्चो के लिए (2) : परिंदे की फ़रियाद

[ बचपन  में स्कूल में अल्लामा इकबाल की तीन  कवितायें सीखी थीं | ‘जुगनू’ काफी पहले दे चुका हूँ , इसी चिट्ठे पर | ‘बच्चे की दुआ ‘ को आगाज़ में प्रस्तुत करूंगा , हालांकि तरन्नुम में जो क्लिप मिली है उसकी तर्ज जुदा है | आज यहाँ पेश है ‘परिंदे की फ़रियाद ‘ | उम्मीद है स्कूली बच्चों को यह सिखाई जाएगी | ]

परिंदे की फ़रियाद

आता है याद मुझको गुजरा हुआ ज़माना
वह बाग़ की बहारें  , वह सबका चहचहाना

आज़ादियाँ कहां वह अपने घोंसले की
अपनी ख़ुशी से आना , अपनी से जाना
लगती है चोट दिल पे , आता है याद जिस दम
शबनम के आंसुओं  पर कलियों का मुस्कुराना
वह प्यारी – प्यारी सूरत , वह कामिनी-सी मूरत
आबाद जिसके दम से था मेरा आशियाना*
आती नहीं सदायें* उसकी मेरी कफस* में
होती मेरी रिहाई  ऐ काश ! मेरे बस में
क्या बदनसीब हूं मैं , घर को तरस रहा हूं
साथी तो हैं वतन में , मैं कैद में पडा  हूं
आई बहार, कलियां फूलों की हंस रही हैं
मैं इस अंधेरे घर में किस्मत को रहा हूं
इस कैद का इलाही ! दुखड़ा किसे सुनाऊं
डर है  यही कफस में मैं गम से मर न जाऊं
जब से चमन छुटा है यह हाल हो गया है
दिल गम को खा रहा है , गम दिल को खा रहा है
गाना इसे समझ के खुश हों न सुनने वाले
दुखते हुए दिलों की फ़रियाद यह सदा* है
आज़ाद मुझको कर दे ओ कैद करनेवाले !
मैं बेज़बां हूँ कैदी , तू छोड़कर दूआ ले
अल्लामा इकबाल

[ आशियाना = घोंसला   , सदाएं = आवाजें , कफस = पिंजरा  , सदा = आवाज , बेज़बां =गूंगा ]

 


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14 टिप्पणियां

Filed under अल्लामा इकबाल, hindi poems, nursery rhymes , kids' poetry

14 responses to “अल्लामा इकबाल : बच्चो के लिए (2) : परिंदे की फ़रियाद

  1. intertecc

    i am searching this poem from last one year.but i find it here. thanks for share this poem

  2. बहुत अच्छी अभिव्यक्ति है शुभकामनायें

  3. बहुत अच्छी अभिव्यक्ति है बधाई

  4. बेहतरीन…
    बच्चों को सुनाई, बेहद पसंद आई….

  5. मेरी पसन्दीदा नज़्म, जनाब आप ने बड़ी बेहतरीन चीज़ पेश की है

  6. पक्षियों को पिज़ड़ों में कैद करने वालों को जरूर सुननी चाहिए ये नज़्म

  7. श्रीमान, ये विचार तो आप से ही लिया है, आप की पोस्ट पढ़कर।
    इसके लिये आपका शुक्रिया। आप के सुझाव चाहिए

  8. क्या बात है !

    गुलामी और परवशता में सुख कहां . ऐसी ही एक कविता शिवमंगल सिंह सुमन की है :

    हम पंछी उन्‍मुक्‍त गगन के
    पिंजरबद्ध न गा पाएंगे
    कनक-तीलियों से टकराकर
    पुलकित पंख टूट जाएंगे ।

    हम बहता जल पीनेवाले
    मर जाएंगे भूखे-प्‍यासे,
    कहीं भली है कटुक निबोरी
    कनक-कटोरी की मैदा से ।

    स्‍वर्ण-श्रृंखला के बंधन में
    अपनी गति, उड़ान सब भूले
    बस सपनों में देख रहे हैं
    तरु की फुनगी पर के झूले ।

    ऐसे थे अरमान कि उड़ते
    नील गगन की सीमा पाने
    लाल किरण-सी चोंच खोल
    चुगते तारक-अनार के दाने ।

    होती सीमाहीन क्षितिज से
    इन पंखों की होड़ा-होड़ी,
    या तो क्षितिज मिलन बन जाता
    या तनती साँसों की डोरी ।

    नीड़ न दो, चाहे टहनी का
    आश्रय छिन्‍न-भिन्‍न कर डालो
    लेकिन पंख दिए हैं, तो
    आकुल उड़ान में विघ्‍न न डालो ।
    *****

  9. बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना ….

  10. पिंगबैक: इस चिट्ठे की टोप पोस्ट्स ( गत चार वर्षों में ) « शैशव

  11. Ramanand angh

    परिंदे की फरियाद का हिंदी अर्थ

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