खतरनाक हुआ वर्ष
अपने असंख्य वर्षों के बारे में
चुप ही रहेगी पृथ्वी
पर मेरे छप्पन वर्षों के बाद
उगा यह तबाही से खतरनाक हुआ वर्ष
मनहूस दस्तावेज की तरह
फड़फड़ाता ही रहेगा
बची – खुची जिन्दगी की छाती पर
इतनी बर्बरता और इतनी जल्दी और इतनी फुरती से
कौन थे उन्मत्त घोड़ों पर सवार
जिनकी दहलाती टापों ने रौंद दिये
बच्चों के भविष्य के घरौंदे
भूकंप के बाद
खड़े होने लगते हैं घर
तूफान के बाद
जाल और डोंगियाँ सुधारने लगते हैं
मछुए और मल्लाह
पर इस मलबे में दब कर क्षत – विक्षत हुए ईश्वर को
शायद ही जोड़ पाऊँगा मैं ।
– चन्द्रकान्त देवताले ( दिसम्बर ,१९९२ )
समकालीन हिंदी कविता में चंद्रकांत देवताले की कविताएं कितनी आवेगमयी और फिर भी कितने रचनात्मक कौशल से विवेक का पल्लू पकड़े रहती है और किसी तरह से एक सार्वजनिक घटना को बेहद निजी स्पर्श के साथ कितनी खूबसूरती से हम सब का मर्म अभिव्यक्त करती है, यह कविता इसकी मिसाल है।
shukriyaa!!
देवताले जी हमारे समय के एक अत्यन्त महत्वपूर्ण कवि हैं। गहन संवेदना, नैतिक साहस और काव्य विवेक का जबरदस्त संतुलन उनकी कविता की ताकत है। इस कविता में भी उनकी इन विशेषताओं को देखा जा सकता है।
दंवतालेजी को पढना ही आनन्ददायी है । उनकी सम्वेदनाएं, दुधमुंहे शिशु की तरह होती हैं – निश्छल ।
मानवीय दुष्कृत्य के विरुद्ध एक सशक्त कविता है।
Excellent Indeed!!
It has captured the basic tregedy theme with a pessimistic approach, as the future seem to be darker and more heneous, enough to shudder into the interiors of a sensetive and emotional mids and hearts.
Sorry to express in English, as my predecessors ,here in the comment box have expressed accuartely & perfectly in Hindi which could not be even equalled.
आपका ये नया मंच खूब है.फिलवक्त सरसरी ही देख पाया.टाइपिंग की भूल सुधार लीजियेगा. शख्सियतों .
पिंगबैक: इस चिट्ठे की टॉप पोस्ट्स ( गत चार वर्षों में ) « शैशव