भारतीय ‘जागृति’ बनाम पाकिस्तानी ‘बेदारी’ का राष्ट्र-प्रेम

पाक जागृति

पाक जागृति



‘हम लाये हैं तूफ़ान से कश्ती निकाल के , इस मुल्क़ को रखना मेरे बच्चों को संभाल कर’ ऊपर का विडियो १९५७ में बनी पाकिस्तानी फिल्म बेदारी का है।  नीचे का गीत आप सब ने १५ अगस्त , २६ जनवरी , २ अक्टूबर अथवा ३० जनवरी को विविध भारती पर सुना होगा। बेदारी में इसके अलावा जागृति से प्रेरित अन्य गीत भी हैं । दोनों फिल्मों की कहानी भी समान थी ।

बहरहाल , यूट्यूब पर पाकिस्तानी और भारतीय देश-प्रेम सैंकड़ों टिप्पणियों की शक्ल में देखा जा सकता है । मजेदार बात यह है कि दोनों ओर से नथूने फुलाने वाले ही नहीं कुछ समझदार लोग भी मिल जाते हैं । जैसे एक भारतीय पाठक कहता है ,’२१वीं सदी में ऐसे गीतों में उन १० फ़ीसदी लोगों के तबके का भी हवाला होना चाहिए जो भारत और पाकिस्तान दोनों पर शासन करता है ।’ यही पाठक कहता है ,’हम जागृति फिल्म के कवि प्रदीप के इन्हीं गीतों को सुनकर बड़े हुए हैं लेकिन सैटेलाइट टेलीविजन चैनल आने के बाद इन्हें सुनने के लिए यूट्यूब के सहारे हैं ।’ दोनों तरफ़ के गीतों को सुनने के बाद ,’चलिए हम सगे भाइयों की तरह रहें’ और ‘काश भारत-पाक विभाजन न हुआ होता’ जैसे उद्गार भी व्यक्त हुए। लाजमी तौर पर बहस में बाँग्लादेश और काश्मीर का हवाला भी आता है । बाँग्लादेश की मुक्ति संग्राम का हवाला देते वक्त यह भी याद दिला दिया जाता है कि मुस्लिम लीग का गठन ढाका में हुआ था । एक साँस में भारत और पाकिस्तान दोनों का जिन्दाबाद लगाने वाले भी मिलते हैं । पाकिस्तान में इस गीत पर एक नया विडियो बना है जिसमें तिरंगा जलाते हुए दिखाया गया है , यह समझदार पाकिस्तानियों के भी गले नहीं उतरता।’परस्पर घृणा रोको और हूनर की इज़्ज़त करो’ कहने वाले भी हैं और इन गीतों में पाकिस्तानी गीत बाद में आए यह साबित हो जाने के बाद यह बताना न चूकने वाले भी हैं कि ‘पहले tum hi ho mahboob mere masood rana खोजें (१९६६ का पाकिस्तानी गीत आ जाएगा),फिर tum hi ho mehboob mere shahrukh khan खोजने पर १९९० भारतीय गीत आ जाएगा ।
धर्माधारित राष्ट्र (हिन्दू अथवा इस्लामिक) अथवा दो धर्म- दो राष्ट्र का परिणाम सांस्कृतिक औपनिवेशिक शोषण से मुक्त हुआ बाँग्लादेश है ।
बहरहाल जागृति की कहानी सुन लें । १९५४ में सत्येन बोस निर्देशित जागृति में पण्डित कवि प्रदीप के गीत हैं और हेमन्त कुमार का संगीत है। मुख्य अभिनेता अभि भट्टाचार्य , राजकुमार गुप्ता , रतन कुमार , प्रणति घोष , बिपिन गुप्ता , मुमताज़ बेग़म हैं। गीत मोहम्मद रफ़ी , आशा भोंसले और कवि प्रदीप ने गाये हैं । कहानी एक बरबाद ,अभद्र , रईसज़ादे अजय (राजकुमार) के चारों ओर घूमती है । उसे अनुशासित करने की उम्मीद में उसके दादा उसे एक हॉस्टल वाले स्कूल में भेजते हैं । अजय ने मानो संकल्प ले रखा है न सुधरने का। वह नए सुपरिन्टेंडेन्ट शेखर (अभि भट्टाचार्य) और स्कूल प्रशासन से उलझता रहता है। अजय शक्ति नामक विकलांग छात्र (रतन कुमार) से दोस्ती करता है लेकिन उसके कहने का भी कोई असर नहीं होता। शेखर बच्चों में अच्छे मूल्य अंकुरित करने के लिए कई अपारम्परिक प्रयोग करता है। अजय हॉस्टल से भागने की कोशिश करता है , शक्ति की उसे रोकने के चक्कर में एक दुर्घटना में मृत्यु हो जाती है। इसका असर शक्ति पर होता है ।वह खेल और पढ़ाई दोनों में अव्वल हो जाता है। शेखर अपना सुधार अभियान फैलाने अन्यत्र कूच कर जाते हैं ।
यह गौरतलब है कि जागृति भी उसी निर्देशक की १९४९ में बनी बाँग्ला फिल्म से प्रेरित थी । राष्ट्रीय आन्दोलन का आभा मण्डल तब तक विलुप्त नहीं हुआ था। किशोर अपराध तथा तालीम के अपारम्परिक तरीकों को निर्देशक ने बिना बड़े सितारों के सुन्दर तरीके से दिखाया है । रतन कुमार एक बाल कलाकार के रूप में बिमल रॉय की दो बीघा जमीन(१९५३) तथा राज कपूर की बूट पॉलिश (१९५४) में पहले ही स्थापित हो चुका था । सत्येन बोस ने जागृति के अलावा बन्दिश , मासूम और मेरे लाल नामक बच्चों की फिल्में बनायीं । उनकी सर्वाधिक चर्चित फिल्म गांगुली ब्रदर्स और मधुबाला अभीनित चलती का नाम गाड़ी रही ।
बेदारी ( १९५७ ) के अभिनेताओं के नाम रतन कुमार , रागिणी , सन्तोष , मीना और अनुराधा है । लखनऊ के वरिष्ट चिट्ठेकार डॉ. प्रभात टण्डन ने इन नामों (सभी हिन्दू नाम) को देखकर उन्हें भारतीय मान लिया । फिल्म के प्रमुक गायक सलीम रज़ा ईसाई थे और सन्तोष १९२८ में लाहोर में पैदा हुए थे , मूल नाम सैयाद मूसा रज़ा था। सन्तोष पाकिस्तानी फिल्मों के सुधीर के बाद सुपर स्टार थे। उनकी पहली फिल्म भारत में बनी अहिन्सा थी । रतन कुमार भारत में बूट पॉलिश ,दो बीघा जमीन के अलावा बैजू बावरा ( बालक बैजू ) , बहुत दिन हुए और फुटपाथ में बाल कलाकार के रूप में आ चुका था । वह १९५६ में पाकिस्तान चला गया । जागृति की कर्बन कॉपी बेदारी में तो वह पुरानी भूमिका में था । पाकिस्तान में भी बाल भूमिका में वह वाह रे जमाने , मासूम और दो उस्ताद में आया । नायक के तौर पर पाकिस्तान में वह नागिन , नीलो , अलादीन का बेटा और नीलोफ़र ,ताज और तलवार ,शायरे इस्लाम, गज़नी बिन अब्बास , हुस्नो इश्क , बारात , समीरा , छोटी अम्मी , आसरा में आया । पाकिस्तान से भी कलाकार भारत आ कर हाथ आजमा चुके हैं और पाकिस्तानी फिल्मों में हिन्दू अभिनेता – अभिनेत्रियाँ क्रिकेट से ज्यादा तादाद में रहें हैं । आजकल भारत में लोकप्रिय हुए सुफ़ीनुमा गीतों के गायक और गायन बैण्ड से पहले की यह बात है ।
इन्टरनेट के इस सूचनावर्धक पहलू ने मुझमें पाकिस्तान की बारे में और जानने की इच्छा जगाई है ।

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6 टिप्पणियां

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6 responses to “भारतीय ‘जागृति’ बनाम पाकिस्तानी ‘बेदारी’ का राष्ट्र-प्रेम

  1. अफलातून जी
    आपकी यह पोस्ट वाकई दिलचस्प लगी। गीत किसकी नकल है यह एक अलग मुद्दा है पर इसमें कोई संदेह नहीं है कि दक्षिण एशिया के रचनाकारों की रचनाओं का सामाजिक आधार एक जैसा ही है। बोलचाल की समानता के कारण पाकिस्तान करीब लगता है। ऐसे में अगर दोनों तरफ के बुद्धिजीवी आजादी के बाद थोपे गये मुद्दों से हटकर अगर संपर्क बढ़ाये तो शायद आम लोगों की समझ में अधिक बात आयेगी। ऐसे में अंतर्जाल पर किसी प्रकार का संपर्क महत्वपूर्ण हो सकता है। आपके द्वारा बताये गीत मै इस पर सुन रहा हूं तो ऐसा लगता है कि कुछ रचनाकार भी विभाजन कराने वालों द्वारा थोपे गये मुद्दों में फंस गये। यह योजनापूर्वक की गयी नकल है और आप मेरी यह बात समझ सकते हैं। चर्चित मुद्दे थोपे गये हैं और असली मुद्दे जिससे संपर्कों में निरंतरता बनी रहती है उन्हें ढंक दिया गया। बहरहाल आपकी यह एक प्रभावपूर्ण पोस्ट है। इसके लिये बधाई।
    दीपक भारतदीप

  2. दीपक भारतदीप जी से एकदम सहमत!
    गीत के बोलों पर खास ध्यान ना दिया जाये तो सुनने में सारे गीत कर्णप्रिय है।

  3. नकल हम भारतियों-पाकिस्तानियों का जन्मसिद्ध अधिकार है।
    ********************************
    रक्षा-बंधन का भाव है, “वसुधैव कुटुम्बकम्!”
    इस की ओर बढ़ें…
    रक्षाबंधन पर हार्दिक शुभकानाएँ!

  4. पिंगबैक: मीयाँ की मल्हार में व्यंग्य « यही है वह जगह

  5. इन गीतों और फ़िल्म के बारे में सुना था आज देख भी लिया। ऐसे कामों की आलोचना करना दूरियों को बढ़ाना है जोकि कोई भी समझदार इंसान नहीं चाहेगा और जब हम हालीवुड से टीप सकते हैं तो हिंदुस्तान-पाकिस्तान तो फ़िर एक ही ज़मीन के दो टुकड़े हैं।
    इस फ़ेर में न ही पड़ा जाए तो बेहतर। पूरी जानकारी बहुत ही मज़ेदार है।

  6. पिंगबैक: इस चिट्ठे की टोप पोस्ट्स ( गत चार वर्षों में ) « शैशव

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