अयोध्या का यही अर्थ हम जानते थे
जहाँ न हो युद्ध
हो शांति का राज्य
अयोध्या की यही नीति हम जानते थे
जहाँ सबल और निर्बल
बिना भय के
पानी पीते हों एक ही घाट
अयोध्या की यही रीति हम जानते थे
जहाँ प्राण देकर भी
सदा निभाया जाये
दिया गया वचन
यह था अयोध्या का चरित्र
गद्दी का त्याग और वनवास
गद्दी के लिए खूनी खेल नहीं
अयोध्या का मतलब
गृहयुद्ध का उन्माद नहीं
घृणा के नारे नहीं
अयोध्या का मतलब कोई इमारत नहीं
दीवारों पर लिखी इबारत नहीं
अयोध्या का मतलब छल नहीं , विश्वासघात नहीं
भय नहीं रक्तपात नहीं
अयोध्या का मतलब
हमारी सबसे मूल्यवान विरासत
अयोध्या का मतलब
मनुष्य की सबसे गहरी इबादत
अयोध्या का मतलब
हमारे आदर्श , हमारे सपने
हमारे पावन मूल्य
हमारे हृदय का आलोक
अयोध्या का मतलब न्याय और मर्यादा और विवेक
अयोध्या का मतलब कोई चौहद्दी नहीं
अयोध्या का मतलब सबसे ऊँचा लक्ष्य
जहाँ दैहिक , दैविक , भौतिक संताप नहीं
यह कौन-सी अयोध्या है
जहाँ बची नहीं कोई मर्यादा
यह कौन-सी अयोध्या है
जहाँ टूट रहा है देश
यह कौन-सी अयोध्या है
जहाँ से फैल रहा है सब ओर
अमंगल का क्लेश
यह कौन-सी अयोध्या है
जहाँ सब पूछते नहीं
एक-दूसरे का हाल-चाल
पूछते हैं केवल अयोध्या का भविष्य ।
– राजेन्द्र राजन.
फरवरी १९९३.
” जहाँ प्राण देकर भी
सदा निभाया जाये
दिया गया वचन ”
फिलहाल तो अयोध्या के नाम पर नित नए झूठ के जाल ही बुने जा रहे हैं . आम जनता को एक बार फिर से यह स्मरण रखने की जरूरत है :
” अयोध्या का मतलब छल नहीं , विश्वासघात नहीं
भय नहीं रक्तपात नहीं
अयोध्या का मतलब
हमारी सबसे मूल्यवान विरासत
अयोध्या का मतलब
मनुष्य की सबसे गहरी इबादत
अयोध्या का मतलब
हमारे आदर्श , हमारे सपने
हमारे पावन मूल्य
हमारे हृदय का आलोक
अयोध्या का मतलब न्याय और मर्यादा और विवेक”
कवि के शब्द हमें जागृत करें ! विवेकवान बनाएं !
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राजेन्द्र राजन की नित नई कविताएँ पढ़वाकर आप उन्हें हमारा प्रिय कवि बनाते जा रहे हैं। यदि यहाँ न पढ़ती तो शायद कभी भी पढ़ने को नहीं मिलतीं। सो बहुत बहुत धन्यवाद।
‘यह कौन सी अयोध्या है’ पढ़कर मन यह प्रश्न करने लगता है कि क्या सच में अयोध्या के नाम पर जो हो रहा है या होता रहा है वह राम के लिए ही है या किन्हीं और कारणों से। राम के व्यक्तित्व के बहुत से पहलुओं से मैं सहमत नहीं हूँ परन्तु जिस राम को हम सब जानते हैं वे कभी भी सत्ता का खेल तो नहीं ही खेलते। अपने लिए किसी और का घर तो नहीं ही तोड़ते। वे तो स्वयं व अपनों को कष्ट सहने देते परन्तु किसी अन्य को कष्ट नहीं दे सकते थे। यह कविता किसी भी मानव की चेतना झकझोरने को काफी है। अच्छा होता कि हमारी व आज की पीढ़ी ऐसे कवियों व कविताओं को पढ़ती और कुछ आत्म मंथन करती।
घुघूती बासूती
nice
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सुंदर!