वे जान गए हैं
कि नहीं उछाला जा सकता
वही शब्द हर बार
क्योंकि उसका अर्थ पकड़ में आ चुका होता है
इसीलिए
वे जब भी आते हैं
उछाल देते हैं कोई और शब्द
गिरगिट के रंग बदलने की तरह
जब बदल जायें शब्द
तो अर्थ वही रहता है
शब्द बदल जायें तो भी
– राजेन्द्र राजन
१९९५.
सकुलर नाम अपनौ धरै , हिंदुन को गरियाये.
देश के दुशमन संग खडा, वाम पंथी कहलाये’ :)
पिंगबैक: दो कविताएं : श्रेय , चिड़िया की आंख , राजेन्द्र राजन « समाजवादी जनपरिषद
the poems have got very intense meaning…they are simply beautiful…..
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