शब्दों में शब्द जोड़ते
मैं वहाँ आ पहुंचा हूं
जहां और शब्द नहीं मिलते
मैं क्या करूँ
अब मैं कैसे लिखूं
समय के पृष्ट पर
अपनी सबसे जरूरी कविता
शब्दों में शब्द जोड़ते
जहां चुक जाते हैं शब्द
मैं क्या करूं ?
क्या मैं वहीं खुद को जोड़ दूं ?
मगर
क्या अपने शब्दों जैसा मैं हूं ?
– राजेन्द्र राजन
१९९५.
आपकी कविता का चयन बहुत प्रभावपूर्ण है। इस पर मेरा मन कुछ पंक्तियां कहना चाहता है।
दीपक भारतदीप
जब जज्बातों में आता ठहराव
तब शब्द खामोश हो जाते
स्तब्ध मन सन्नाटे में
ताकता है
उस समय न सोचना अच्छा लगता है
न बोलना
तब भी अंतर्मन समेटता है कई ख्याल वहां
वही अंदर बनाते हैं आशियाना
जिनमें रहते हुए शब्द होते हैं ताकतवर
जब टूटता है सन्नाटा
बहते चले जाते
कहीं कहानी तो कहीं कविता बन जाते
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