जहाँ चुक जाते हैं शब्द : राजेन्द्र राजन

शब्दों में शब्द जोड़ते

मैं वहाँ आ पहुंचा हूं

जहां और शब्द नहीं मिलते

मैं क्या करूँ

अब मैं कैसे लिखूं

समय के पृष्ट पर

अपनी सबसे जरूरी कविता

शब्दों में शब्द जोड़ते

जहां चुक जाते हैं शब्द

मैं क्या करूं ?

क्या मैं वहीं खुद को जोड़ दूं ?

मगर

क्या अपने शब्दों जैसा मैं हूं ?

– राजेन्द्र राजन

   १९९५.

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4 टिप्पणियां

Filed under hindi poems, rajendra rajan

4 responses to “जहाँ चुक जाते हैं शब्द : राजेन्द्र राजन

  1. आपकी कविता का चयन बहुत प्रभावपूर्ण है। इस पर मेरा मन कुछ पंक्तियां कहना चाहता है।
    दीपक भारतदीप

    जब जज्बातों में आता ठहराव
    तब शब्द खामोश हो जाते
    स्तब्ध मन सन्नाटे में
    ताकता है
    उस समय न सोचना अच्छा लगता है
    न बोलना
    तब भी अंतर्मन समेटता है कई ख्याल वहां
    वही अंदर बनाते हैं आशियाना
    जिनमें रहते हुए शब्द होते हैं ताकतवर
    जब टूटता है सन्नाटा
    बहते चले जाते
    कहीं कहानी तो कहीं कविता बन जाते
    ………………………..

  2. पिंगबैक: यह सिर्फ शब्दों से नहीं होगा : राजेन्द्र राजन « समाजवादी जनपरिषद

  3. पिंगबैक: दो कविताएं : श्रेय , चिड़िया की आंख , राजेन्द्र राजन « समाजवादी जनपरिषद

  4. पिंगबैक: इस चिट्ठे की टोप पोस्ट्स ( गत चार वर्षों में ) « शैशव

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