गत प्रविष्टी से आगे : यह कुटी बापू की कुटी के बगल में ही थी । १२ फुट चौड़ी और १२ फुट लम्बी जगह और एक बाथरूम ।इस कुटी में प्रार्थना – भूमि की ओर ४ फुट चौड़ा बरामदा था।इस कुटी के बगल में आश्रमवासियों के रहने के लिए एक बड़ा मकान ( आदिनिवास ) भी था । दूसरी ओर बापू कुटी और बा कुटी के बीच में बा के हाथ के लगाये तुलसी और मोगरा के पेड़ भी थे । हरिजन ‘सत्याग्रहियों’ ने लेटने के लिए बा का कमरा और बरामदा पसंद किया । बा के लिए रह गया बाथरूम ।
बापू ने बा से पूछा , ‘ इन लोगों ने तुम्हारा कमरा पसंद किया है । क्यों , इनको दिया जाय न ? ‘ प्रारम्भ में बा ने कुछ आनाकानी की । बापू ने सत्याग्रहियों की ओर से आग्रह किया। अंत में बा ने कहा , ‘ ये तो आपके लड़के हैं , अपनी झोपड़ी में ही जगह दे दीजिए न ? ‘ बापू ने हँसकर जवाब दिया , ‘ लेकिन मेरे लड़के तेरे लड़के भी तो हैं ? ‘ बा निरुत्तर हो गयीं और अपना कमरा इन ‘सत्याग्रहियों’ के लिए खाली कर दिया ।
यह ‘सत्याग्रह’ कुछ दिन चला और शायद नये सत्याग्रहियों के अभाव में समेट लिया गया। लेकिन तब तक उन्होंने बा के कमरे पर कब्जा कर रखा था । इनकी रहन-सहन में सफाई नहीं थी । बा ने वह सब चुपचाप सहन किया । इतना ही नहीं , आवश्यकता पड़ने पर उन लोगों को पीने के लिए पानी देतीं थीं और समय – समय पर खबर पूछ लेती थीं । एक बार खुद के लड़कों की तरह स्वीकार कर लेने के बाद वे चाहे जैसे भले-बुरे हों तो उसकी बा को परवाह नहीं थी । उनका कर्तव्य तो पुत्रों की स्नेहयुक्त सेवा करना ही था ।
आश्रम में भोजन परोसने का काम बापू करते थे । भोजन-सम्बन्धी अपने तरह-तरह के प्रयोगों की जानकारी वे मेहमानों को देते जाते । ‘ इस खाखरे (कड़ी पतली रोटी) में एक चम्मच सोड़ा डाला है , यह चटनी किस चीज की है जानते हो ? खाओगे , तब पता चलेगा।कडुवे नीम का कुडुवापन तो उसका गुण ही है न ? लहसुन रक्तचाप के लिए लाभदायी है ।’इत्यादि। परोसने में बा भी बापू की मदद करती थीं , लेकिन वह मक्खन , गुड़ या ऐसी ही कोई मीठी चीज परोसती थीं । उनके परोसने में हम बच्चों को विशेष मजा आता था । बाहर से कोई चीज भेंट के तौर पर आयी हो तो बा वह हमारे लिए बचाकर रखती थीं ।सफर में भी हम लोगों को भरपेट भोजन मिला या नहीं , इसकी बा चिन्ता रखती थीं ।
नयी – नयी चीज सीखने की हविस में बा को कभी बुढ़ापा छुआ नहीं। एक बालक के जितनी उत्सुकता से वह सीखने को तैयार रहती थीं । बा का अक्षर-ज्ञान मामूली था। इसलिए ज्ञान-विज्ञान के दरवाजे उनके लिए बन्द जैसे थे । बापू के साथ रहने में पढ़ाई का बड़ा मौका मिल सकता था यह बात सही है,लेकिन उनके साथ रहकर भी जड़ के जड़ रहे लोगों को भी मैंने देखा है । बा के बारे में यह बात नहीं थी । कुछ-न-कुछ नया सीखने के लिए उनका मन हमेशा ताजा था । एक बार मुझे नजदीक बुलाकर उन्होंने पूछा,’क्यों बाबला,तेरे आजकल कौन-कौन से वर्ग चल रहे हैं ? ” मैंने कहा , ‘ राजकुमारी अमृतकौर के पास अंग्रेजी और विज्ञान , भणसाळीकाका के पास अंग्रेजी का व्याकरण , मॊरिस फ्रीडमन के पास बढ़ईगिरी और रेखागणित तथा रामनारायण चौधरी के पास हिन्दी व्याकरण और रामायण पढ़ रहा हूँ । अंग्रेजी , गणित आदि विषय ऐसे थे , जिनमें बा की खास गति नहीं हो सकती थी। इसलिए उन्होंने मुझसे कहा , ‘ तू मुझे रामायण नहीं पढ़ायेगा ?’ मैं असमंजस में पड़ गया । मैंने कहा ,’मोटी बा , आप रामनारायणजी के पास ही पढ़िये न ?मैं तो नौसिखिया हूँ ।’ बा ने कहा ,’नहीं,नहीं, रामनारायण के पास तो समय होगा या नहीं,कह नहीं सकती।फिर कोई मुझे गुजराती में समझानेवाला तो चाहिए ? ऐसा कर। तू दिन में उनके पास जो सीखता है , वह मुझे शाम को सिखाता जा । मैं भी तो नौसिखिया ही हूँ न !’ फिर कुछ दिन तक रोज शाम को सत्तर साल की मोटी बा ने पन्द्रह वर्ष के बाबला से तुलसीकृत रामायण के पाठ लिये। एक बार बापू भी यह नाटक देख गये और अपनी मुस्कराहट द्वारा उन्होंने सम्मति प्रकट की । आज भी मैं जब रामचरितमानस खोलता हूँ , तब मेरे मानसपटल पर जगन्माता सीता के साथ-साथ जगदंबा कस्तूरबा की वह भक्तिमयी निर्मल मूर्ति विराजमान हो जाती है ।