जुगनू : अल्लामा इक़बाल की बाल कविता

सुनाऊं तुम्हे बात एक रात की,

कि वो रात अन्धेरी थी बरसात की,

चमकने से जुगनु के था इक समा,

हवा में उडें जैसे चिनगारियां.

पडी  एक बच्चे की उस पर नज़र ,

पकड़ ही लिया एक को दौड़ कर.

चमकदार कीडा जो भाया उसे ,

तो टोपी में झटपट छुपाया उसे.

तो ग़मग़ीन कैदी ने की इल्तेज़ा ,

‘ओ नन्हे शिकारी ,मुझे कर रिहा.

ख़ुदा के लिए छोड़ दे ,छोड़ दे ,

मेरे कैद के जाल को तोड दे .

-“करूंगा न आज़ाद उस वक्त तक ,

कि देखूं न दिन में तेरी मैं चमक .”

-“चमक मेरी दिन में न पाओगे तुम ,

उजाले में वो तो हो जाएगी गुम.

न अल्हडपने से बनो पायमाल –

समझ कर चलो- आदमी की सी चाल”.

-अल्लामा इक़बाल.

Advertisement

8 टिप्पणियां

Filed under nursery rhymes , kids' poetry

8 responses to “जुगनू : अल्लामा इक़बाल की बाल कविता

  1. पिंगबैक: इस चिट्ठे की टॉप पोस्ट्स ( गत चार वर्षों में ) « शैशव

  2. राहुल

    मजा आ गया। बेहतरीन

  3. यशवन्त माथुर

    आज 10/10/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

  4. जीवंत भावनाएं.सुन्दर चित्रांकन,बहुत खूब
    बेह्तरीन अभिव्यक्ति

  5. pankaj kumar sah

    बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति….http://pankajkrsah.blogspot.com पर भी पधारें स्वागत है

  6. पिंगबैक: दोनों मूरख , दोनों अक्खड़ / भवानीप्रसाद मिश्र | शैशव

एक उत्तर दें

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  बदले )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  बदले )

Connecting to %s