आज सुबह से नल था मौन्,
पता नहीं कारण था कौन ?
मैंने पूछा तनिक पास से ,
भैय्या दिखते क्यों उदास से ?
बोला , ‘क्या बतलाऊं यार ,
रोज सहन सहन करता हूं मार .
कान ऐंठता जो भी आता ,
टांग बाल्टी मुझे सताता .
लडते मेरे पास खडे हो ,
बच्चे हों या मर्द बडे हों .
नहीं किसी को दूंगा पानी !
इसीलिए हडताल मनानी !
पास रखी तब बोली गागर ,
‘ हम हैं रीते,तुम हो सागर ,
जल्दी प्यास बुझाओ मेरी ,
सोच रहे क्या ? कैसी देरी ?
नल को दया घडे पर आई,
पानी की झट धार बहाई ..
(कवि- अज्ञात,किसी को पता हो तो जरूर बताए.)
कविता कभी पढ़ी तो नहीं, पर बच्चों की कविता जब भी पढ़ते हैं मानो बचपन आँखोंके सामने सजीव हो जाता है।
बहुत अच्छी कविता/ कवितायें है।
पिंगबैक: इस चिट्ठे की टोप पोस्ट्स ( गत चार वर्षों में ) « शैशव
रचयिता का नाम तो नही मालूम किंतु बड़ी ही अच्छी कविता साझा करने का आभार .
पिंगबैक: दोनों मूरख , दोनों अक्खड़ / भवानीप्रसाद मिश्र | शैशव